द्रव्य और पर्याय दोनों से आत्मा को जानना वह ज्ञान है । मन का मोन यानी विचारों का मौन । जब विचार शांत हो जाते हैं तब यह मौन सिद्ध होता है ।
परा वाचा वाणी का मौन सिद्ध होता है तब वाचा वचन का पूर्ण मौन कहलाता है ।
वैखरी वाणी के मौन से भी मध्यमा , पश्यंती और परावाणी का मौन उत्कृष्ट है ।
जहां व्रत्ति नहीं है , वहां आत्मा तो है ही ।
“सुखमस्यात्मनो रूपं, सर्वेहा उपरतिस्तनु:”
सुख, आनंद यह आत्मा का स्वरूप है , समस्त इच्छाओं की शांति यह उसका शरीर है । ज्ञान मार्ग में श्रवण मुख्य साधन है । जो वस्तु , व्यक्ति या बनाव पूर्व परिचित है उसका श्रवण करते ही तुरंत उसका साक्षात्कार होता है ।
महामौन में संधिकाल बहुत लंबा होता है । उसमें आनंद स्वरूप आत्मा का परिचय बढ़ने से ब्रह्मा का निरूपण श्रवण होते ही तदाकार यानी ब्रह्माकार तुरंत ही बन जाते हैं । इसलिए ब्रह्मा का निरूपण सही तरह से समझ में आता है । शंका नहीं उठती और मन का साधन का समाधान होता है ।
रागादी भाव शत्रु की उपरति – निवर्त्ति होने से परमात्मा के प्रति समर्पण भाव जागृत होता है और समर्पण भाव आने से भगवान ही कर्ता कर्ता है , जिव नही और वह जो भी करते हैं वह अच्छा ही होता है , उसका प्रत्यक्ष अनुभव है । विचारों के पूर्ण विराम की अवस्था आत्मारामी पने की प्राप्ति के बाद ही पैदा होती है ।
इच्छाएं मानव को दरिद्र बनाती है । इच्छाओं का अभाव मानव को अमीर बनाता है । मनुष्य जीवन का एक श्वास भी निरर्थक गंवा देना वह एक बड़े राज्य को गंवाने बराबर है ।
शरीर के नव द्वारों से ऊपर उठेंगे तो ही दसवें द्वार तक पहुंच सकते हैं । सांसारिक अनुभव का संबंध बाहर ले जाने वाले नव द्वार जैसा है । आत्मा का अनुभव दसवें द्वार में है ।
सौ चिंताओं में से निन्यानवे चिंताए व्यक्ति की खड़ी हुई काल्पनिक होती है । जीवन के अनमोल समय को जलाकर खाक कर देती है । मस्तक पर भगवान को रखे ताकि मस्तक का भार उतर जाए । मस्तक उत्तम अंग है इसलिए वहां कचरे जैसी चिंताओं को न रखते हुए भगवान को सौंप देना चाहिए । सहानुभूति संकटों को भागाकार करती है । आश्वासन आपत्तियों की बादबाकी करता है । चंद्र पर उतरना आसान है , लेकिन अपने आप को समझना कठिन है सहिंता में ही सहानुभति है । दुख के साक्षात्कार में ही आत्मा का जागरण होता है । अंतर की पीड़ा ओं की आंतरिक समझ ही अपनी आत्मा की चरम सीमा पर विस्फुपूरीत हो जाती है । इस सीमा तक आने वाले दुखों की दुखों को जो खुशी से सहन करता है वह दुखों से पार हो जाता है । राग रहित प्रेम ही अहिंसा की अनुभूति है । आत्मविश्वास सेल्फ कॉन्फिडेंस यह आत्मा की अचल संपत्ति है ।