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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 10
मां ने कहा, हे वत्स! मेरी बात तू ध्यानपूर्वक सुन। इस दृष्टिवाद के ज्ञाता जैन मुनि होते हैं। वे महासत्वशाली होते हैं, सन्मार्गगामी होते हैं…….. और उस मार्ग पर चलते समय बीच में कितने ही परिषह-उपसर्ग भी आए तो भी वे सन्मार्ग से च्युत नहीं होते हैं। आत्म-साधना ही उनका जीवन मंत्र होता है। भौतिक जगत से पर होते हैं।…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 9
“मां! तुझे पता नहीं है, मै चोदह विद्याओं में पारगामी बन कर आया हूं……. राजा और प्रजा सभी का सम्माननीय बना हूँ। क्या मेरी इस विद्या में अपूर्णता दिखाई दे रही है?” “बेटा! मेरे दिल में मात्र इस जीवन की ही चिंता नहीं है। तू जानता है कि इस देह में रहा आत्मतत्व शाश्वत है। देहि (आत्मा) शाश्वत है। देह…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 8
थोड़ी ही देर बाद रुद्रसोमा की सामयिक पूर्ण हुई।सामयिक में वह मोन थी …….उसने अपने पुत्र आर्यरक्षित को कुछ भी नहीं कहा था क्योंकि वह जानती-समझती थी कि सामयिक में संसार संबंधी किसी भी प्रकार का चिंतन नहीं करना चाहिए। उस नियम के पालन में वह दृढ थी। आर्यरक्षित भी जानता था कि मां सामायिक में है, अतः उसकी चरणरज…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 7
……. आर्य रक्षित ने दूर से ही मां के चरणों में प्रणाम किया। परंतु आश्चर्य मां ने कुछ भी प्रत्युत्तर नहीं दिया। मां रुद्रसोमा उच्चतम संस्कारों से युक्त महासती सन्नारी थी। बचपन से ही उसने जैन धर्म का गहन अभ्यास किया था। जीव क्या है? पुण्य और पाप क्या है? इत्यादि तत्वों से वह पूर्ण ज्ञाता थी। तत्व की वह…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 6
अंत में आर्यरक्षित ने अत्यंत विनम्र भाव से कहा- वास्तव में, मैं इस स्वागत के योग्य नहीं हूं। महाराजा तथा पूजनीय माता-पिताश्री के शुभ आशीर्वाद से ही मैं थोड़ा बहुत ज्ञानार्जन कर सका हूं…….. वास्तव में यश के भागी तो वही है……उनकी कृपा से ही मुझे थोड़ा बहुत ज्ञान मिला है, अतः इस सम्मान के अधिकारी तो वे पुज्यवर ही…