यदि सकारण रुदन होता तो योग्य समाधान द्वारा उस रुदन को रोका जा सकता।
सोए हुए को जगाया जा सकता है परंतु जो सोने का बहाना कर रहा हो, उसे जगाना शक्य नहीं है।
नवजात शिशु के रुदन के पीछे अन्य कोई शारीरिक पीड़ा तो थी नहीं . . .अतः सुनंदा ज्यों-ज्यों उस शिशु को शांत करने का प्रयास करती,त्यों-त्यों वह शिशु और अधिक रुदन करता। इस प्रकार सतत रुदन के द्वारा वह न तो माता को खाने देता . . . और सोने देता। सुनंदा किसी भी काम से जुड़ी होती, उसी समय वह बालक जोर – जोर से रूदन कर माँ के कार्य में विपक्ष डालने की कोशिश करता। बालक के सतत रुदन के कारण माँ सुनंदा हैरान – परेशान हो गई।
इस प्रकार छः मास का दीर्घ समय व्यतीत हो गया. . . और आचार्य सिंहगिरी अपने परिवार के साथ तुंबवन नगर में पधारे। नगरवासियों ने गुरुदेव का भावभीना स्वागत किया । गोचरी के समय जब धनगिरी मुनि गोचरी के लिए जाने लगे, तब किसी पक्षी के कलरव को सुनकर गुरुदेव ने धनगिरी मुनिवर को कहा, हे मुनिवर! आज गोचरी में सचित या अचित जो भी भिक्षा मिले, उसे ग्रहण कर लेना।
धनगिरी मुनि ने गुरुदेव की आज्ञा शिरोधार्य की। यद्यपि जैन मुनि अपनी भिक्षा में अचित व कल्प्य पदार्थ ही बहोरते हैं; फिर भी गुरुदेव ने जब से सचित या अचित कुछ भी लेने को कहा. . . उस समय धनगिरी मुनि ने किसी प्रकार का तर्क नहीं किया। वे जानते है कि गीतार्थ गुरुदेव को कुछ भी आज्ञा देते हैं, उसके पीछे परमार्थ की भावना रही हुई होती है।
अपनें गुरुदेव की आज्ञा को शिरोधार्य कर धनगिरी मुनिवर, आर्यसमित मुनि के साथ गोचरी के लिए नगर में निकल पड़े।. . . भीक्षा के लिए आगे बढ़ते हुए वे सुनंदा के भवन में आ गए . . . और उन्होंने जोर से धर्मलाभ कहा ।