महान ज्ञानी
आर्य सिंहगिरी अपने परिवार के साथ विहार करते हुए आगे बढ़ रहे थे।
इधर अवंती नगर में दशपूर्वधर महर्षि भद्रगुप्त सूरी जी म. बिराजमान थे।
आर्य सिंहगिरी ने सोचा, वज्र मुनि के क्षयोपशम अत्यंत ही तीव्र है, यह वज्र पुर्वो का अभ्यास करने में समर्थ है। अवंती में बिराजमान भद्रगुप्त सूरिजी दशपूर्वो के ज्ञाता है। यह वज्र भद्रगुप्त सूरी जी म. के पास ज्ञानार्जन कर सकता है।
इस पर विचार कर आर्य सिंहगिरी ने वज्रमुनि को भद्रगुप्त सूरिजी म. के पास जाकर पूर्वो का अभ्यास करने के लिए आज्ञा प्रदान की।
गुरु आज्ञा स्वीकार कर अन्यमुनि के साथ वज्रस्वामी ने अवन्ति देश की और अपनी विहार यात्रा प्रारंभ कर दि।क्रमशः आगे बढ़ते हुए वज्रमुनि उज्जयिनी नगरी के बाहर पहुंच गए।
इधर प्रभात समय मे आचार्य भद्रगुप्त सूरिजी म. अपने शिष्यो को कहने लगे, आज मैंने एक सपना देखा। मेरे हाथों में रहा दूध का पात्र कोई पी गया और उसने तृप्ति का अनुभव किया। इस स्वप्न के आधार पर में अनुमान करता हूँ की आज किसी बुद्धिशाली साधु का आगमन होना चाहिए, जो मेरे पास रहे दशपूर्वो को ग्रहण कर सकेगा। अहो! आज किसी योग्य पात्र की प्राप्ति होगी और मेरे दश पूर्व का संग्रह सफल सार्थक बनेगा।
आचार्य भगवंत अपने शिष्यों के साथ वार्तालाप कर रहे थे तभी वज्रमुनि ने वसति में प्रवेश किया। स्वप्न में द्रष्ट आकृति-प्रकृति के अनुसार ही वज्रस्वामी को देखकर भद्रगुप्त सूरिजी म. एकदम प्रसन्न हो गए।
उसी समय आचार्य भगवंत ने कहा, मुनिवर! तुम कुशल हो न! तुम्हारी विहार यात्रा कुशलतापूर्वक चल रही है न? तुम्हारे गुरुदेव सकुशल है न? इस बार अचानक अवंती नगर में आने का विशेष प्रयोजन?
हे भगवन! आप श्री ने पहले ही कुशलता पूछी…… यह सब आप श्री का प्रसाद है। आपश्री की असीम कृपा से कुशल मंगल है। पूज्यपाद गुरुदेव श्री सकुशल है और उन्होंने दशपूर्वो के अध्ययन के लिए आपके पास भेजा है।