प्रातः काल की मधुर बेला में प्रकृति का सौंदर्य सभी के आकर्षण का केंद्र बना हुआ था। पूर्व दिशा में लालिमा छा चुकी थी। उषा देवी सूर्यनारायण के स्वागत के लिए आतुर थी। कोकिल के सुरीले संगीत से वातावरण मनमोहक बन रहा था। धरती माता सूर्य किरणों की चादर ओढ़ने के लिए उत्सुक थी।
दशपुर की जनता में आज आनंद समा नहीं रहा था। प्रजाजनों के ह्रदय सरोवर में आनंद की उर्मिया उछल रही थी।
महाराजा से लेकर सामान्य जनता तक के ह्रदय में बड़ी भारी उत्सुकता थी।
स्नान आदि से निवृत्त होकर, सुंदर वस्त्रों को धारण कर सभी प्रजाजन नगर के बाहर स्थित मनोरम उद्यान की ओर जा रहे थे। नारियां गीत गा रही थी। हाथी घोड़े रथ और पैदल से वातावरण प्रफुल्लित बना हुआ था। कभी हाथी की गर्जना……….तो कभी घोड़े का हेशारव, बालको के दिल को प्रसन्न कर रहा था।
प्रजावत्सल महाराजाधिराज उदायन भी रथ में आरूढ़ हो चुके थे। वह भी मनोरम उद्यान की ओर आगे बढ़ रहे थे। वीरज, बांसुरी, ढोलक, मृदंग व अन्य वाद्ययंत्रों के स्वर से वातावरण संगीत मय बना हुआ था। सभी नर नारियों के मुख मंडल में प्रसन्नता थी। जयजयकार के नारों से समूचा आकाश मंडल गूंज रहा था। चारों और स्वागत की शहनाइयां बज रही थी।
गत दिन नगर में चारों और नगर-रक्षकों के द्वारा आर्यरक्षित के आगमन पर स्वागत कि यह उदघोषणा हो चुकी थी।
दशपुर नगर के शणागार समा विप्रवर सोमदेव पुरोहित के पुत्र पण्डितवर्य आर्यरक्षित चोदह विद्याओ में पारगामी बनकर पाटलिपुत्र नगर में पधार रहे है।
ज्ञान की गंगोत्री समान आर्यरक्षित के स्वागत के लिए महाराजा स्वयं नगर के बाहर पधारेंगे………… अतः सभी प्रजाजनों को इस स्वागत यात्रा में पधारने की आज्ञा है।
नगर के नर नारियों के ह्रदय में नया उत्साह व नयी उमंग थी। सबके अधिक आनंद तो विप्रवर सोमदेव को था। सोमदेव के ह्रदय में आनन्द समा नही रहा था ।