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कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 3

कुदरत ऐसे ही मान जाए ? विश्व के करोडो जीव कुदरत को कह रहे थे कि ‘ वर्धमानको जल्दी संसार में से बहार निकालकर उसे साधना कराओ !

कुदरत ! वह केवलज्ञान पाकर धर्म देशना दे तो ही हम करोडो जीव सच्चे सुखी बन सकेंगे !

कुदरत क्या सिर्फ एक यशोदा की विनंती स्वीकारे ? या विश्वे के करोडो जीवों की?

और अंततः एक दर्दमय दिन आ पहुंचा ! माता त्रिशला और सिद्धार्थराजा इस मोहमाय दुनिया को छोड़कर हमेशा के लिए चले गए ! समग्र क्षत्रियकुंड आक्रंद करने लगा ! नगरी की ऊँची इमारते , वृक्ष , कुए भी जाने की शोक न करते हो वैसे शोक की ध्वनि से व्याप चुके थे !

संपूर्ण क्षत्रियकुंड में सिर्फ दो व्यक्त्तिओं कि आँखे गिली नहीं हुई थी ! एक थे वर्धमान और दूसरी यशोदा ! लग्न की प्रथम रात्री को ही यशोदा ने भविष्य में होनेवाली आपतिओं का विचार कर रखा था ! उसे सहन करने के लिए बरसों से सहनशक्त्ति भी इक्ठ्ठी कर राखी थी! इस लिए आँखे रोने के लिए तत्पर होने के बावजूद भी यशोदा ने उन्हें रोक रखा था !

यशोदा ने जाने कि नेत्रों को सीख दे दी के ,’ अभी रोना नहीं, अभी तो स्वामी के वियोग का बहुत बड़ा लगना है ! तभी तुम मन भरकर बरसना!

परंतु दो दिनों के बाद समाचार मिले कि , ‘ वर्धमान के बड़े भाई नंदिवर्धन के आग्रह से और दो वर्ष संसार में रहना स्वीकारा है ! परंतु वह संसारी साधु बनाकर जीएगे! क्षत्रियकुंड या राजकुल केवल मुख के दर्शन के अलावा और कुछ पा नहीं सकेंगें !

वर्धमान ने अभी यशोदा के भवन में आना भी बन्द कर दिया था ! अंतिम बार मिलने जाने जितनी भी सुह्र्दता वर्धमान ने प्रदर्शित नहीं कि ! यशोदा ने खुद के ह्रदय को कठोर कर सब कुछ पचा लिया !

हे धरती! तू फोगट गर्व नहीं करना की तू विश्व में सबसे ज्यादा सहन करनेवाली स्री है! अरे ! अरे ! यह यशोदा के सामने तो तेरी सहनशक्ति की कोई किंमत नहीं है! तू तो बहुत बार ध्रुज उठी है! परंतु यशोदा तो शिकायत भी नहीं करती या खुदके दुःखे को हलका करने के लिए रोती भी नहीं!

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