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कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 15

महाभिनिष्क्रमण के पथ पर

मागसर वद 10 का सुर्योदय हुआ…
क्षत्रियकुण्ड में जोरदार तैयारियां चल रही थी! पिछली रात को कोई प्रजाजन सोए नहीं थे ! कल होने वाली वर्धमान की दीक्षा के विषय की बाते और तैयारीयो में कभी सुर्योदय हो गया उसका ख्याल किसी को न आया! आकाश देव-देविओ से उभराने लगा ! विशाल राजमहल में दास-दसियाँ चारो और भागंभाग कर रहे थे ! आज किसी को भी फुरसद नहीं थी !

इस अवसर पर राजमहल में दूसरी मंजिल के विशाल शयनखण्ड में यशोदा सुनमुन बनकर बेठी थी! उसके जीवन का सबसे दुःखमय दिन आ चूका था ! आज वह सती स्त्री पति होने के बावजूद विधवा बनने वाली थी! आज वह स्त्री संसारी होने के बावजूद आज भाव से सान्यासिनी बनने वाली थी !

यशोदा गई रात को एक पल के लिए भी सो न सकी! किन्तु शादी की प्रथम रात से ही उसने स्वामी के दीक्षा दिन की कल्पना तो की ही थी! परन्तु जभी वह कल्पना हकीकत बनकर नजरो के सामने उपस्थित हुई, तभी यशोदा के लिए वह असह्र बन गई! महान कष्ट पूर्वक आवश्यक कार्यो को सम्पूर्ण कर वह फिर से विशाल शयनखण्डमे में आकर बेठ गई ! दीक्षा का वरघोड़ा निकलने की घड़िया नजदीक आ रही थी ! यशोदा आखरी दो वर्षो से वर्धमान से मिली भी नहीं थी ! उनके साथ बाते कर नहीं सकी थी ! यशोदा को बहुत इच्छा हुई की आखरी दिन पर तो स्वामी के साथ अंतिम वार्तलाप करना मिले ! परनतु यह कैसे शक्य बने ? निचे वर्धमान हजारों व्यक्तिओ से धिरे हुए थे!देव- इन्द्र- राजा आदि वर्धमान को आजु बाजू से घेर कर बेठे है! कैसे मिला जा सके ?

यशोदा खडी हुई, बैठने के लिए बने हुए ऊँचे आसन पर बेठी! अभी ही थोडी पलो में सामने दिखते हुए राजमार्ग से स्वामी हमेशा के लिए विदाय लेगे ! यशोदा सोचती रही, ‘बाद में क्या ? में किसके साथ रहूंगी? मेरा कौन? प्रिया तो थोड़े वर्षो के बाद शादी करके ससुराल जाएेगी! मै सम्पूर्णतः निराधार बन जाऊँगी ! यह वैभव, यह राजसुख, यह सुख सायबी स्वामी बिना सब शून्य महसूस होगा! यह महल मेरे लिए खंडेर बन जाएगा! मुझे अकेली को भोजन भी कैसे रुचेगा? दिन में 24 घंटे कैसे प्रसार करुँगी? एक एक पल मुझे बरसो जितनी बड़ी लगेगी…

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