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आखिर , जो होना था – भाग 1

जब दूर से यक्ष द्विप दिखायी देने लगा तब नाविक ने अमरकुमार का ध्यान खींचा ‘कुमार सेठ, अब एकाध घटिका में अपन यक्ष द्विप पर पहुँच जायेंगे। देखिये …. वे ऊँचे ऊँचे वुक्ष जो दिखाई देते हैं वे यक्षद्विप के ही हैं। ‘ उसने यक्षद्विप की दिशा में ऊँगली दिखा कर कहा ।
‘देखो , पहला काम तुम लोग मीठे पानी को भरने का करना। खाना बाद में बनाना । ‘ ‘आपकी आज्ञा अनुसार ही होगा , कुमार सेठ। नाविक ने विनय से कहा ।
अमरकुमार सुरसुंदरी के पास पहुँचा। यक्षद्विप की तरफ उसका ध्यान खींचते हुए कहा :
‘सुन्दरी, वहाँ पहुँचकर तुरन्त घूमने के लिए चले चलेंगे ।’
‘आपके लिए भोजन ….?’
‘आज का भोजन आदमी लोग बना लेंगे … तुझे नहीं बनाने का है ।’
यक्ष द्विप की ओर जहाज तेजी से आगे बढ़ रहे थे । नाविक जहाजों को किनारे पर लंगर डालकर खड़े करने की तैयारी करने लगे । बारह ही जहाजों पर के लोग किलकारियाँ किये जा रहे थे ।
समुद्र में उचित स्थान पर लंगर डालकर जहाजों को रोक दिया गया। जहाजों से बंधी हुई नोकाओं को तैयार किया गया । सबसे पहले अमरकुमार एवं सुरसुन्दरी नोका में उतरे । नाविक ने नोका को द्विप के किनारे की ओर चला दी ।
किनारा आते ही अमरकुमार कूद गया । सुरसुन्दरी को हाथ का सहारा देकर उतारा । नाविक ने नोका को वापस जहाज की ओर लोटा ली ।
अमरकुमार व सुरसुन्दरी द्विप के मध्यभाग की तरफ चल दिये। द्विप हरियाली से भरा हुआ था । कई तरफ के वुक्षों की घटाएँ महक रही थी । जगह जगह पर खुशबु से छलकते फूलों के पौधे बिछे थे। बहते पानी के सुन्दर झरने थे ।
काफी घूमे । सुरसुन्दरी बेहद थक गयी। एक पेड़ के नीचे दोनों विश्राम लेने के लिये बैठे।
तन श्रमित था। वुक्ष की ठंडी छाँव थी। हल्की सी हवा बह रही थी । सुरसुन्दरी की आँखे घिरने लगी । और वह अमरकुमार के उत्संग में सर रखकर करवट लिये सो गयी ।
निद्राधीन बनी सुरसुन्दरी के चेहरे पर अमरकुमार की आँखे टकटकी बाँधे निहार रही है … उसका मन बोलने लगा :
‘कितनी निशिचत बनकर गहरी नींद में सो रही है । मुझ पर कितना भराँसा है इसको । इसके चेहरे पर कितनी प्रसन्नता छायी है । वो मुझे कितना गाढ़ प्यार करती है ।’

आगे अगली पोस्ट मे…

संबंध जन्म जन्म का – भाग 6
May 29, 2017
आखिर , जो होना था – भाग 2
May 29, 2017

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