गुणमंजरी ।
शुभ स्फटिक सी दीप्तिसभर देह । सुदीर्घ लोचन , प्रशस्त वक्षप्रदेश …
समुन्नत भालप्रदेश पर कुष्ण पक्ष सी झूलती श्याम अलकलटे … राजकुमारी को
दुष्ट तस्कर एक अज्ञात गुफा में ले आया था। जब गुणमंजरी ने अपने पिता के भेष
में छुपे हुए चोर को पहचाना , तब वह चीखती हुई तत्क्षण बेहोश होकर धरती पर गिर
पड़ी ।
रात बैरन बन चुकी थी। वह होश में आयी। उसका फूल सा नाजुक दिल फट पड़ा। असह्म
वेदना से वह व्याकुल हो उठी। आँखों की करुण वेदना आंसुओं में पिघलती हुई बहने
लगी। विचारशून्य हो गयी। वह रात भर रोती रही । वहां उसे दिलासा देने वाला था
कौन ? कौन उसके सर पर हाथ फेरकर उसे सहलाने वाला था ?
सुबह हुई । तस्कर ने सुन्दर कपड़े पहने… कीमती गहने सजाये। पान चबाकर होंठ
लाल किये … और गुणमंजरी के पास आया। गुणमंजरी सावधान हो गई , वह अपने शरीर
को सीमटाकर बैठ गई ।
‘डर मत , राजकुमारी । यहां तुझे किसी भी बात का दुःख नहीं होगा । तेरे पिता
अगर ऊपर के नगर का राजा है तो मैं इस भुगर्भनगर का राजा हूं । जितनी दौलत मेरे
पास है उतनी शायद तेरे पिता के पास भी नहीं होगी। और मेरे सामने देख…. क्या
कमी है मुझ में ? मेरी काया कहां कम सुन्दर है ? एक स्त्री को क्या चाहिए ? जो
चाहिए वह सब कुछ मेरे पास है। तुझे मैं मेरी रानी बनाऊंगा …. हा … हा …
हा …
तस्कर के अट्टहास से विशाल गुफा का वह गुप्त आवाज गूंज उठा । राजकुमारी
कांप उठी । उसकी आंखें डर के मारे विस्फारित रह गयी ।
‘बोल मेरी बात मान रही है या नहीं ? मुझे जवाब दे इसी वक़्त और यहीं पर ।’
आघे अगली पोस्ट मे…