राजमहल तो शमशान हो गया है। कौन किसे दिलासा दे ? सभी परेशान है…. गुमसुम
है ।’
‘फिर महाराजा ने क्या किया ?’
‘वह मुझे मालूम नही है…. मै तो इतने समाचार पा कर तुरन्त दौड़ती हुई यहां पर
आयी हुँ…. कुमार ।’
विमलयश खड़ा होकर व्यग्र मन से कमरे में टहलने लगा। मालती स्तब्ध होकर विमलयश
को ताक रही थी। उसने होले से कहा : ‘कुमार !’
विमलयश ने मालती को प्रशनभरी निगाह से देखा ।
‘कुमार, तुम जादुई पंखा बनाकर भारी से भारी बुखार मिटा सकते हो, तो क्या ऐसा
कोई जादू नही है कि राजकुमारी जहां हो वहां से वापस लायी जा सके ?’
विमलयश ने मालती की आँखों में वेदनासभर विवशता पाई। हालांकि उसका मन भी
तीव्र पीड़ा से छलनी हुआ जा रहा था। गुणमंजरी के साथ उसका तीव्र सख्यभाव दिल
मे जीवंत था…। वह मालती के सवाल का कुछ जवाब दे, इससे पहले तो राजमार्ग पर
जोर जोर से ढोल नगारे बज उठे। इसके बाद एक राजपुरुष उँची आवाज में घोषणा करने
लगा :
‘बेनातट के नागरिकों, सुनो !
भयंकर जुल्मी चोर राजकुमारी को अपहरण कर के उठा ले गया है । कोई वीर पुरुष
राजकुमारी को जिंदा वापस छुड़ा लायेगा उसे महाराजा अपना आधा राज्य दे देंगे एवं
राजकुमारी की शादी उसके साथ करेंगे ।’
विमलयश तुरन्त एक पल की भी देर किए बगैर महल से बाहर निकला। घोषणा करने वाले
राजपुरुष के पास जाकर उसने घोषणा स्वीकार कर ली ।
‘जाओ महाराजा से कह दो मै विमलयश, उस नालायक चोर को और मासूम राजकुमारी को कल
सवेरे महाराजा के चरणों मे हाजिर कर दूंगा।
आगे अगली पोस्ट मे…