महाराजा अश्वारूढ़ हो कर वेग से सरोवर के किनारे आ पहुँचे । इतने में तो
धोबी दौड़ता हुआ औऱ कापती आवाज में बोला :
‘महाराजा, चोर आया था… मै चिल्लाया तो वह डर के मारे सरोवर में कूद गया…
देखिए… दूर दूर तक वह तैरता हुआ जा रहा है… उसका सर भी नजर आ रहा है ।’
धोबी कांप रहा था…
महाराजा ने कहा : अब तो उसकी मौत आ गयी समझ। ले यह मेरा घोड़ा पकड़… मेरे कपड़े
वगैरह संभाल। मै अभी सरोवर में कूद कर उसका पीछा करता हूं ।’ यो कहकर कपड़े….
मुकुट…और दूसरे शस्र धोबी को सौपकर महाराजा हाथ मे केवल कटारी लिये और कमर
पर अधोवस्र पहने सरोवर में कूद गये…. चोर का पीछा करने के लिए तैरते हुए आगे
बढ़ने लगे…. उधर वह चोर भी आगे बढ़ रहा था, तैरते तैरते महाराजा दूर निकल
गये…। इधर धोबी ने महाराजा के कपड़े पहन लिये…. सर पर मुकुट चढ़ाया और घोड़े
पर चढ़ बैठा । अपने चेहरे को महाराजा के चेहरे सा बना लिया ।’
‘वह धोबी ही चोर था न?’
‘हा कुमार, वह घोड़े पर बैठकर किले के दरवाजे पर आया…. और सेनिको को इशारे से
समझा दिया कि ‘मैने चोर को मार डाला है।’ सैनिक तो हर्ष मनाते हुए वहां से
चले गये। द्वाररक्षक ने महाराजा के अंदर जाते ही दरवाजे बंद कर दिये ।
नकली राजा राजमहल में पँहुच गया बेरोकटोक । सीधा महारानी के पास गया। शयनगृह
में दीये मद्धिम मद्धिम जल रहे थे। उसने महारानी को जो जगती ही बैठी थी, कहा
मैं गुणमंजरी को साथ ले जा रहा हुँ । चोर पकड़ा गया है…. मेने महाकाल की
मानता मानी थी तो मै तुरंत ही गुणमंजरी को साथ लेकर महाकाल देव के दर्शन
करूँगा…. । मिठाई की थाली चढ़ाऊंगा । दो घटिका मे तो हम वपास लोट आएंगे ।’
महारानी प्रसन्न हो उठी चोर के पकड़े जाने का समाचार पाकर। उसे संदेह आने का
कोई कारण नही था। गुणमंजरी को तुरन्त जगाया और उसे नकली महाराजा के साथ रवाना
कर दी । गुणमंजरी आधी तो नींद में ही थी । राजा के साथ चुपचाप घोड़े पर बैठ गयी
। घोड़ा तीव्र वेग से नगर के पशचिमी दरवाजे से बाहर निकल गया।
‘ओह…पर सरोवर में पड़े हुए महाराजा का क्या हुआ ?’ विमलयश का स्वर
उद्धगिनता से छलक रहा था । उसका मन अशांत हो उठा था ।
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