मालती विमलयश के समीप बैठ गई ।
‘गत रात्रि में महाराजा स्वयं चोर को पकड़ने के लिए अपने चुनिंदा सेनिको के साथ
निकले थे । उन्होंने किले के चारो द्वार पर सशस्र सैनिको की चौकी बिठाई
थी…. और खुद पूर्व दिशा के मुख्य दरवाजे पर शस्रसज्ज होकर खड़े रहे थे।
पहला प्रहर पूरा होने की तैयारी थी, की एक आदमी गधे पर कपड़े की गठरी डालकर
पूर्व दिशा के दरवाजे से नगर के तरफ से आता दिखायी दिया। महाराजा ने पूछा :
‘कौंन है तू ? कहा जा रहा है इस वक्त ?’
‘महाराजा मै आपका ही सेवक हुँ… रजक धोबी हुँ, महारानी साहिबा के कपड़े मै ही
धोता हुँ ।’
‘पर अभी इतनी रात गए कहा जा रहा है ?’
‘कपड़े धोने के लिए, राजन ! ‘
‘पागल हो गया है क्या ? आधी रात को कपड़े धोने जाता है ?’
‘महाराजा क्या करूँ ? महारानी साहिबा तो पद्मिनी स्त्री है, उनके कपड़ो की गंध
से खिंच कर दिन को भवरे मंडराने लगते है… कपड़े धोने नही देते… इसलिए में
रात को ही उनके कपड़े धोता हुँ । सरोवर के किनारे पर चला जाऊंगा… और शांति से
कपड़े धोऊंगा…।’ धोबी दोनों हाथ जोड़कर राजा से निवेदन किया ।
‘तेरी बात सही है….पर तुझे पता है आठ आठ दिन से चोर का कितना उपद्रव मचा हुआ
है ?’
‘कृपावतार, आप जैसे मेरे मालिक है…. दरवाजे पर खड़े हुए… फिर मुझे डर काहे
का ?’ गधे की पीठ थपथपाते हुए धोबी बोला ।
‘ठीक है, जा सरवर के किनारे ! पर यदि चोर उधर आये या तुझे दिखाई दे तो जोर से
चिल्लाना, मै घोड़े पर बैठकर तुरन्त ही वहां पहुँच जाऊंगा ।’
‘आपकी कृपा है महाराजा, जरूर, चोर दिखते ही मैं आवाज लगाऊंगा। आप तुरंत चले
आना… चोर आज तो पकड़ा ही जायेगा। हाँ, उसे शायद मालूम हो गया कि मै महारानी
के कीमती कपड़े धोने के लिए सरोवर के किनारे जाता हूं… तो वह इन कपड़ो के लालच
में भी खिंच आएगा । आपका कहना वाजिब है। आज तो उस चोर के सर पर काल चौघड़िया बज
रहा है । चल चाचा चल…’ यो कहकर गधे को थपथपाते हुए धोबी सरोवर की तरफ चल
दिया।
महाराजा घुड़सवारी करते हुए चारो दिशा के दरवाजे पर जाकर चोकसी कर आए ।
रात का दूसरा प्रहर पूरा होने में था । इतने में सरोवर की तरफ से धोबी की चीख
सुनाई दी। महाराजा ने सेनिको को कहा : तुम यहाँ तलवार के साथ खड़े रहना…. मै
सरोवर के किनारे पर जाता हूँ…. शायद चोर भाग कर इस तरफ आये तो उसे जिंदा या
मारा हुआ उसे पकड़ लेना ।’
आगे अगली पोस्ट मे…