बिदाई की घड़ी आई ।
बेनातट नगर में उदघोषित हो गया कि :
‘विमलयश पुरुष नही है… स्त्री है ।’
‘सार्थवाह अमरकुमार ने चोरी नहीं की है ।’
‘विमलयश का असली नाम सुरसुनादरी है ।’
‘अमरकुमार सुरसुन्दरी के पति है ।’
‘अमरकुमार को चोंकाने के लिए ही विमलयश ने ‘चोर’ का झूठा इलजाम लगाकर पकड़वाया था ।’
‘अमरकुमार चंपानागरी के नगरसेठ के पुत्र है ।’
‘सुरसुन्दरी चंपानागरी के राजा की बेटी राजकुमारी है ।’
‘सुरसुन्दरी के पास ‘रूपपरावर्तिनी’ विद्या है… अध्ष्य हो जाने की भी विद्या है…।
‘अब गुणमंजरी की शादी अमरकुमार के साथ होने वाली है ।’
घर घर और गलीगली में… बाजार में और बगीचों में… हर जगह अमरकुमार और सुरसुन्दरी की चर्चा होने लगी ।
श्री नवकार मंत्र के अचिन्त्य प्रभाव की बातें होंने लगी। लोग तरह तरह की बातें की करने लगे। अमरकुमार और सुरसुन्दरी को देखने के लिए राजमहल में लोगों के टोले आने लगे । दोनों के रूप –गुण को देखकर सभी खुश हो उठते है । प्रसन्न हो जाते है ।
इस सब धांधली में मालती सुरसुन्दरी से एक मिनट भी एकांत में मिल नही पाती है! सुरसुन्दरी से मालती की बेसब्री छुपी नही है। पर सुरसुन्दरी को स्वयं को बातें करने की फुरसत कहाँ थी ? उसने दो पल मालती को एकांत में बुलाकर कहा :
‘गुणमंजरी की शादी हो जाने दे। फिर शांति से सारी बात बताऊंगी ।’ मालती हर्षविभोर हो उठी । वह अपने कार्य में लग गई ।
अमरकुमार ने सुरसुन्दरी से पूछा :
‘यह औरत कौन है ?’
सुरसुन्दरी ने कहा : ‘पहले मेरी यजमान थी… फिर परियाचिका है । और मेरी सहेली कहूं तो गलत नही !’
‘बड़ी चतुर और कुशल है! कार्यदक्ष भी है !’
‘अपन उसे चम्पानगरी ले चलेंगे। पर अभी तो अपन दोनो को महाराजा के पास जाना है। आप तैयार हो जाईए….।’
अमरकुमार के तन मन प्रफुल्लित हो उठे थे । बेनातट में सुरसुन्दरी की
अपूर्व लोकप्रियता देखकर वह बड़ा प्रभावित हो गया था । दोनों दम्पति तैयार होकर राजमहल में पहुँचे ।
आगे अगली पोस्ट मे…