‘तुझे रोकने की गुस्ताखी कौन करेगा ? ताकत है किसी की ?’ शत्रुध्न ने कुष्णकांत की चापलूसी करते हुए कहा । चारों मित्र खिलखिलाकर हंस पड़े ।
गुणसेन ने कहा :
‘देख शत्रुध्न । कल जब जुलूस निकले … तब तुझे देर तक जोर जोर से ढोल पीटना होगा । और भी ढोल- कांसे बजानेवालों को बुला लाना…। और जहरीमल, तू मजबूत डोरी लाना भूलना मत ।’
‘नहीं भूलूंगा…मेरे राजा । अरे , उस शर्मा के बच्चे को डुबकी खिलानी है ना ? खड़ा ही खड़ा उसे कुएँ में उतारूंगा… फिर कुमार तुम मजे से उसे डुबक… डुबक… डुबकियाँ खिलाते रहना ।’
‘बारी बारी से हम चारों डुबकियां खिलवायेंगे… तुम भी तो मजा लेना ।’ कुमार ने उदारता दिखाई ।
तीनों मित्र कुमार की प्रशंसा करने लगे ।
नौकर ने आकर दूध के प्याले रखे और चांदी की थाली में मिठाई रखी । सभी ने दूध और मिठाई की न्याय दिया । सभा समाप्त हो गई ।
ब्राह्मण मुहल्ले में कुष्णकांत ने पैर रखा… कि मुहल्ले के सभी घर फटाफट… बंद होने लगे । घर बंद रहे या खुले… कुष्णकांत को परवाह नहीं थी। उसे तो केवल यज्ञदत्त पुरोहित का घर खुला चाहिए था। शायद बंद भी हो तो खोलना उसे आता था । और सचमुच यज्ञदत्त का घर बंद था। कुष्णकांत को मुहल्ले में घुसते देखकर ही सोमदेवा कांप उठी थी । उसने सटाक से दरवाजा बंध कर के अग्निशर्मा को घर के भीतर के कमरे में छुपा दिया था ।
कुष्णकांत ने घर का दरवाजा खटखटाया ।
‘पुरोहित , दरवाजा खोल ।’
कोई जवाब नहीं देता है…।
‘पुरोहित , दरवाजा खोलता है या नहीं ?’
कुछ प्रत्युत्तर नही मिलता है ।
‘पुरोहित…. या तो सीधे सीधे दरवाजा खोल दे … वर्ना मुझे दरवाजा तोडना होगा…फिर मुझे भला-बुरा मत कहना ।’
फिर भी द्वार खुलता नहीं है….। कुष्णकांत ने जोर से लात मारी , एक … दो … और तीन … तीसरी लात लगते ही दरवाजा चरमराकर टूट गया ।
आगे अगली पेस्ट मे….