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राजकुमार का पश्चाताप – भाग 4

एक-दो या दस-बारह रथ नही, पर पूरे एक सौ आठ रथ राजमहल के विशाल मैदान में पहुँच कर खड़े रहे । नगरश्रेष्ठि के पीछे धीर-गंभीर और प्रतिष्टित महाजन महल के सोपान चढ़ने लगे ।
राजमार्ग पर से महाजन के एक सौ आठ रथो को एक साथ राजमहल की और जाते हुए देखकर , नगरवासी लोग अनेक तरह के तर्क-वितर्क करने लगे ।
शत्रुघ्न की हवेली राजमार्ग पर ही थी। उसने भी महाजनो को राजमहल की ओर जाते हुए देखा । सभी की गंभीर मुखमुदा देखी….। वह सोचने लगा ।
‘क्या वह अग्निशर्मा मर गया होगा ? कल शिकारी कुत्ते उसे बुरी तरह जख्मी कर दिया था…. यदि वह मर गया होगा ….. तब तो हमे इस नगर में रहना भारी पड़ जाएगा । यहां से भाग जाना ही बेहतर होगा । कृष्णकांत से जरा सलाह मशविरा तो करूं ।’
शत्रुघ्न तुरंत ही कृष्णकांत की हवेली पर पहुँचा । वहां पर जहरीमल भी उपस्थित था । तीनों मित्र इकट्ठे हो गये । शत्रुघ्न नें पूछा ।
‘उस अग्निशर्मा के कुछ समाचार ?’
‘वह उस के घर में नहीं है…. उसकी खोज चल रही है।
‘संदेह तो अपने पर ही आएगा न ?’
‘और किस पर आयेंगा ? हम ही तो उसे उठाकर ले जाते है…. यह बात सभी को मालूम है ।’
‘परन्तु, आज तो हमने उसे देखा भी नहीं है ! कौन उठा गया होगा…. यह हमे भी सोचना तो होगा न ?’
‘क्या गुणसेन ने और किसी आदमी के द्वारा तो….’
‘संभव है ! हमने तो मना ही किया था । अभी तीन चार दिन उसे कुछ भी नही करने को कहा था । कुमार को शायद हमारी बात पसंद न भी आई हो !’
‘तो क्या मैं महल मे जाकर तलाश करूं ?’ कृष्णकांत ने कहा ।
‘मुझे तो लगता है…. महल में से अपने लिए बुलावा आया ही समझो ! परिस्तिथि गंभीर लगती है ।’ शत्रुध्न ने कहा ।
हा, यदि वह मर गया होगा तो महाजन के सामने मुँह दिखाने लायक नही रहेंगें !’ जहरीमल बोला ।
‘नही…नही…महारानी हमारा बीच-बचाव जरूर करेगी ।’
तीनो मित्र चिंतित हो उठे थे । उनके दिल मे डर घुस गया था । महाजन की सत्ता को वे अच्छी तरह जानते थे । और साथ ही अपने किये हुए गुनाह भी उन्हें मालूम थे ।

आगे अगली पोस्ट मे…

राजकुमार का पश्चाताप – भाग 3
February 14, 2018
राजकुमार का पश्चाताप – भाग 5
February 14, 2018

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