ब्रह्मा मुहूर्त में यज्ञदत्त ने निद्रा का त्याग किया । सोमदेवा भी जग गई । जगने के साथ उसकी दृष्टि अग्निशर्मा के बिछौने पर गई । अग्निशर्मा को बिछौने में न देखकर वह चौक पड़ी :
‘अरे, अग्नि कहां गया अकेले !’
‘मै भी अभी ही जगा हूं । देखता हूं…. शायद पीछे बाड़े में गया हो ।’ यज्ञदत्त परमात्मा का नामस्मरण करते हुए पिछवाड़े में बाड़े में गये । सोमदेवा दीपक ले आई । सारा बाड़ा देख लिया । परंतु उन्हें अग्नि दिखाई नही दिया । सोमदेवा कि आंखे गीली हो गई…. उसका स्वर गदगद हो उठा ।
‘ओफ्फोह… आज मुझे कैसी गहरी नींद आ गई ?’
‘मेरी भी एक नींद में सुबह हो गई !’
‘तो क्या ये दुष्ट आकर मध्यरात्रि में उसे उठा गये होंगे ? घर के अंदर की कुंडी देखी ?’
‘नही…. अब देख लेते है ।’ पति-पत्नी घर मे आये । भीतर की कुंडी खुली थी । दरवाजा खोलकर दोनों बाहर निकले । हाथ मे दिया लेकर दोनों ब्राह्मणवास के नुक्कड़ तक गये । आसपास के घर बंद थे । गली के श्वान भी शांत सोये हुए थे ।
‘क्या हुआ होगा अग्नि का ? वह स्वयं अकेला कभी बाहर जाता नहीं है…. तब क्या उस यमदूत ने दरवाजे पर दस्तक दी होगी ? अग्नि जग गया होगा ? उसने खड़े होकर दरवाजा खोला होगा ! यदि ऐसा कुछ हुआ हो तो इसकी तलाश करना फिजूल है । परंतु आज दिन तक वे लोग इस तरह रात में कभी अग्नि को ले नही गये हैं !’
पति-पत्नी, सर पर हाथ रखकर सूर्योदय तक बैठे रहे । सूरज के जगने साथ साथ सारा मुहल्ला जग गया था। लोगो की दैनंदिन प्रवर्तिया चालू हो चुकी थी ।
यज्ञदत्त ने स्नान नही किया था । पूजा पाठ भी नही किया था । सोमदेवा ने कहा : ‘नाथ, तो स्नान कर के पूजा-पाठ वगैरह कर ले ।’यज्ञदत्त ने मौन रहकर सहमति दी । सोमदेवा ने पिछवाड़े के बाड़े में पानी का बर्तन रखा और वह स्वयं जल्दी जल्दी उस मुहल्ले के द्विजश्रेष्ठ के वहां पहुँची ।
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