भाई… क्यो इतना सारा विषाद चेहरे पर ? क्यो इतनी ढेर सारी गमगिनी
और उदासी ?’भावी के विचारों की आंधी घिर आयी मनोजगत में!’
‘ओफोह….ऐसे कौन से विचारो की आंधी ने तुम्हे उलझा दिया? यदि मुझे कहने में
ऐतराज़ न हो ….’
‘तेरे से क्या छुपा है …बहन?’
‘तो फिर कह दो ना ! विचारो को व्यक्त कर देने से दिल हल्का हो जाता है ।
भावनाओं को अभिव्यक्त करने से मन शांत हो जाता है।’
‘तेरे विरह के विचारों में खो गया ….
अब तुझे बेनातट नगर भी तो पहुँचना है ना ?’
चारो रानियाँ भाई -बहन बतियाते छोड़कर अपने अपने कामो व्यस्त हो गयी। हालांकि ,
रत्नजटी की उदासी ने सारी रानियों को अस्वस्थ बना दिया था। रत्नजटी की बात
सुनकर सुरसुन्दरी सोच में डूब गयी। नंदीश्वर द्वीप पर मणिशंख मुनिराज का कहा
हुआ भविष्यकथन उसके स्मृतिपट पर उभर आया। उसने रत्नजटी के सामने देखा। रत्नजटी
की आँखों मे बर्फीला पहाड़ पिघलने लगा था।
‘पर भाई ,मुझे बेनातट जाना ही नही है ..मै यही पर रहुँगी ।’
‘ऐसा कैसे हो सकता है ? तू मेरे -हमारे सुख-दुःख की चिंता करती है …तो क्या
मै तेरे सुख का विचार नही करूँगा ? जो भाई अपनी बहन के सुख -सौभाग्य का विचार
न कर सके वह अच्छा थोड़े ही होता है ?
”पर भाई …अब मुझे संसार के सुखों का वैसा कुछ खिंचाव है ही नही ! मै
अमरकुमार के बगैर जी सकूँगी। भाई, तुम्हे छोड़कर कही नही जाऊंगी, बस ? तुम्हारी
वेदना मै नही देख सकती। मै तुम्हारे आँसू नही सह सकती। मै यहाँ सुखी हूँ
…प्रसन्न हूँ !’
भाई के घर का सुख और पतिगृह का सुख-दोनो सुख में काफी अंतर है बहन ! पतिगृह
में दुःख हो फिर भी स्त्री पति के घर पर ही भली लगती है …. यह तो मेरे कोई
जन्म जन्मान्तर के पुण्य प्रगटे की तू मुझे बहन के रूप में मिल गयी ! तुझे
पाकर मै अपने आप को धन्य समझता हूँ! मैने तेरे साथ अनहद स्नेह का नाता जोड़
लिया है। सहज रूप से स्नेह का बंधन जुड़ गया है। पर यह स्नेह ही तेरे वियोग की
पीड़ा देगा। तेरे बिना इस महल की- सुनसान श्मशान से महल की कल्पना ही मेरे दिल
को दहला रही है!’
आगे अगली पोस्ट मे…