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समुन्दर की गोद में – भाग 1

सावन भादों के बादलों के उत्संग में इन्द्रधनुष के जैसे रंग उभरते है वैसे ही रंगों में श्रेष्ठी धनंजय डूबने लगा ।धनंजय जवान था, छबीला नवजवान था । सुरसुन्दरी की देह में से उसे खुशबू , भीगे फूलो की गंध आ रही थी। सुरसन्दरी के प्यार को पाने के लिये उसका दिल बेताब हो उठा था पर वो अपनी अधीरता को व्यक्त करना नही चाहता था। वह चाहता था कि सुरसुन्दरी खुद उसके रंग में रंग जाय। सुरसुन्दरी स्वयं उसे प्यार करने लगे ।
सुरसुन्दरी तो बेचारी धनंजय के सारे व्यवहार को सौजन्य समझ रही थी। यक्ष व्दीप पर धनंजय के दिये वचन को वो ‘ब्रम्हा वाक्य ‘समझकर निश्चिंत थी । फिर भी कभी कभी धनंजय की निगाहों को अपने शरीर पर फिसलती देखकर उसे धक्का से लगता था । ‘यह क्यो मेरी देह को इस तरह टुकुर -टुकुर देखता है ? ‘ उसने सोच समझ कर कपड़े पहनने में मर्यादा की रेखा खीच ली। बारीक वस्त्र पहनना छोड़ दिया ।
एक दिन सुर सुंदरी अपने कक्ष में बैठी थी। व
अतीत की यादों में खोयी खोयी कुछ सोच रही थी कि धनंजय में कमरे में प्रवेश किया। समीप में पड़े हुए भद्रासन पर बैठ गया और बोला :
‘सुरसुन्दरी….आज मेरे मन मे तेरे लिए एक विचार आया औऱ मेरा दिल दु:खी दुःखी हो उठा ।’
मेरे खातिर आपका दिल दुखा….मेरी ऐसी कौन सी गल्ती….?’
‘नही…नही,….तू गलत मत समझ । मै तो ओर ही बात कर रहा हु । तेरी गल्ती कुछ नही…भूल तो उस अमरकुमार की है ।’
‘नही , ऐसा मत बोलिये ! उनकी गलती नही है , वह तो मेरे ही पापकर्मो का उदय है ।’
‘बिल्कुल गलत। तेरा सोचना का ढंग ही गलत है ।यह क्या? उसकी गलती का फल तू भोगे ?तू चाहे तो तेरे पुण्यकर्म अपने आप उदय में आ सकते है । अभी इसी वक्त उदय में आ सकते है । पर इसके लिये मुझे तेरे मन मे से उस निर्दय अमरकुमार को दूर करना होगा ।’

आगे अगली पोस्ट मे…

फिर सपनों के दीप जले – भाग 5
June 7, 2017
समुन्दर की गोद में – भाग 2
June 28, 2017

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