एक दिन राजा घुड़सवारी करता हुआ कुबड़े को साथ लेकर जंगल में शिकार करने गया।
जंगल मे किसी ब्राह्मण का शव पड़ा हुआ था। राजा ने वह शव देखा। राजा को ‘परकाय
प्रवेश’ विद्या का प्रयोग करने की इच्छा हुई। उसने कुबड़े से पुछा: ‘बोल’ मंत्र
की महिमा तू सचमुच मानता है या नही ? ” नही महाराजा, में किसी भी मंत्र तंत्र
में बिल्कुल भरोसा नही रखता। ‘पर’ यदि में तुझे प्रत्क्षय मन्त्र की महिमा
दिखा दू तो ? ‘ तब तो मानना ही पडेगा न ? ‘ तो ले मेरे इस घोड़े को सम्भलना। मै
इस मृत शरीर मे प्रवेश करूँगा। यह मृत शरीर जिन्दा हो उठेगा। और आपकी देह का
क्या होगा ? ‘वह मुर्दे की भांति पड़ी रहेगी फिर ?
‘ फिर वापस में मेरे शरीर में प्रवेश कर दूँगा। तब वह ब्राह्मण का शरीर वापस
मुरदा बन जायेगा। मृत शरीर हो जायेगा। राजा घोड़े पर से नीचे उतरा। घोड़ा कुबड़े
को सौपकर उसने मंत्र स्मरण किया। उसकी आत्मा ने विप्र से मृतदेह में प्रवेश कर
दिया। विप्र देह- ब्राह्मण का शरीर संजीव हो उठा। राजा का शरीर निश्चेष्ट
निष्प्राण होकर पड़ा रहा। ब्राम्हण के शरीर में रहा हुआ राजा कुबड़े को पूछता है
:
देखा मंत्र का प्रभाव ? हा, महाराजा ! अब मैं भी यही प्रयोग करता हूं वो कहकर
तुरंत उसने मंत्र का स्मरण किया। और राजा के मृत देह में प्रवेश कर लिया।
कुबड़े का शरीर निष्प्राण हो गया। कुबड़ा राजा हो गया.. राजा तो ब्राह्मण के
शरीर में था। राजा तो सकपका गया उसने पूछा : तूने यह मंत्र सीखा कब ? कुबड़ा अब
हँसता हुआ कहता है आपके मुँह से सुन सुनकर। राजा ने कहा ठीक है, तूने सीखा
मुझे कोई एतराज नही है अब तू मेरे शरीर से निकल जा ताकि मै अपने शरीर में वापस
प्रवेश कर सकू ? कुबड़ा ठहाका मारकर हंसा और बोला : अब मै इस शरीर को छोड़ु ?
इतना मूर्ख थोड़े ही हु अब तो मै ही राजा हो गया है..तू तेरे इस ब्राम्हण के
शरीर में रहकर भटकते रहना वो कहकर वह घोड़े पर सवार होकर नगर मे आ गया.. राजमहल
में गया। अंत:पुर में जाकर रानी से मिला..और राजा की भांति जीने लगा।
आगे अगली पोस्ट मे…