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भीतर का श्रंगार – भाग 3

अपन स्त्रियो के वस्त्रो में सबसे महत्वपूर्ण वस्त्र है कंचुक ! दया एवं करुणा
का कंचुक अपन को पहनना है। स्त्री करुणा की जीवित मूर्ति होती है… क्षमा एवं
दया की जीवन्त प्रतिमा सी होती है।
अपने गले मे शील एवं सदाचार का नवलखा हार सुशोभित हो रहा हो। यह अपना कीमती
में कीमती हार है। प्राण चले जायें तो भले पर अपना शील नही लूटना चाहिए।
अपने मस्तक पर…. ललाट पर तिलक चाहिए ना ? वह तिलक करना है तपश्चर्या का।
अपने जीवन में छोटी या बड़ी कोई न कोई तपश्चर्या होनी ही चाहिए।
यह जो आप भाभियो ने मेरे हाथ में रत्नों व मोतियों से जड़े हुए कंगन पहनाये ना
? ये सुशोभित तो होंगे अगर मै इन हाथो से सुपात्र दान दू। अनुकम्पा दान दू हाथ
की शोभा दान से है। दान यही अपना सच्चा कंगन है।
अपने होठ… अपन पान से ताम्बूल से लाल करते है पर सचमुच तो सत्य एवं प्रिय
वाणी ही अपना ताम्बूल है अपनी वाणी असत्य एवं अप्रिय नही होनी चाहिए। मेरी
चारो भाभियो की वाणी कितनी मीठी है ? कितनी सच्ची एवं अच्छी है ? इसलिए तो में
तुम सब पर मोहित हो गयी हुँ।
चारो रानिया शर्मा गयी उनकी आंखें जमीन पर लग गयी सुरसुन्दरी ने प्रेम से चारो
के चेहरे ऊपर किये और अपनी बात आगे चलायी…
मेरी आँखों मे तुमने काजल लगाया है ना ? जब मेरी आँखें पहले से ज्यादा सुंदर
लग रही हैं ना ? पर इससे भी ज्यादा सुंदर आंखे मुझे तुम्हारी लग रही है…
चूँकि तुम्हारी आँखों में लाज का काजल लगाया हुआ है… स्त्री की आँखों मे लाज
का काजल होना ही चाहिए.. वो स्त्री सबको प्यारी लगती है सब के दिल मे बस जाती
है… श्रंगार रचाने का हेतु भी तो दूसरों को अच्छा लगना… दूसरों के दिल में
बसना ही होता है ना ?
‘अरे वाह ! कितना प्यारा प्यारा श्रंगार बताया है दीदी तुमने तो ! वाकई में
मजा आ गया आज तो तुम्हारी बात सुनकर। मेने तो अभी तक ऐसी बाते सुनी भी नही।
सचमुच दीदी। यही सच्चा श्रंगार है स्त्री का। ओर अब ये तुम्हारी बाते सुनने के
बाद हमे समझ मे आ गया कि क्यों तुम श्रंगार सजाने से इंकार करती रही हो ?
और.. ऐसे अदभुत गुणों का श्रंगार तो तुमने सजा ही रखा है। फिर भला इस बाहरी
लीपापोती की तुम्हे क्योकर चाह रहेगी ? दूसरी रानी बोल उठी।
पर…

आगे अगली पोस्ट मे…

भीतर का श्रंगार – भाग 2
September 1, 2017
भीतर का श्रंगार – भाग 4
September 1, 2017

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