श्रेष्ठी धनावह ने शादी के प्रसंग को पूरी धामधुम से मनाने के लिये कई तरह की योजनाएं बना दी। अपने एकलौते बेटे की शादी वो जोर- शोर से और पूरे उत्सव के साथ करने के इच्छुक थी, और ऐसी इच्छा एक प्यार भरे एवं उदार पिता के दिल मे जागे यह स्वाभाविक था। जिस पर यह तो राजपरिवार मिला था, समधि के रूप में ! खुद के पास भी अपार संपत्ति थी ! फिर वह कसर रखे भी क्यो ! भव्य और विशाल हवेली में अमरकुमार व सूरसुन्दरी के लिये शानदार और कलात्मक खंड तैयार किये गये। श्रेष्ट तरह की कलाकृतियों से भी ज्यादा प्रिय लगे वैसी साजसज्जा की गयी। धनावह श्रेष्ठी ने सूरसुन्दरी के लिये, राज्य के जाने माने सुवर्णकारों को हवेली में निमंत्रित कर के आभूषण तैयार करवाये। हिरे-मोती व पन्नों के कीमती नंग उन आभूषणों में जड़वाये। अमरकुमार के लिये भी उनके मन-पसंद अलंकार बनाये गये। राजमहल और हवेली में निमंत्रित मेहमान आने लगे। शादी का दिन निकट आ गया । शादी की सारी रीति-रस्में पूरी होने लगी। शुभ दिन एवं शुभ मुहूर्त में आनन्दोत्सव के साथ अमरकुमार और सूरसुन्दरी की शादी हो गयी।
सुरसुरन्दरी की आंसू बरसती आंखों से राजा-रानी ने विदा दी। रानी रातिसुन्दरी ने सिसकती आवाज में कहा:
‘बेटी,पति की छाया बनकर रहना। सुरसुरन्दरी फफक फफक के रो दी। अमरकुमार के रथ में बैठकर वो श्वसुरगृह को विदा हुईं। अमरकुमार ने वस्त्राचल के छोर से सुरसुरन्दरी के आँसू पोछे। सुरसुरन्दरी ने अमरकुमार के सामने देखा। अमर की आँखे भी गीली थी। सुरसुरन्दरी का दुःख उसके आँसू, मानो अमर का दुःख…. अमर के आँसू बन गये थे।
रथ हवेली के द्वार पर आकर खड़ा रहा। दम्पति रथ में से नीचे उतरे। सेठानी धनवती ने दोनों का विधिवत हवेली में प्रवेश करवाया। दोनों ने धनवती के चरणों में प्रणाम किये। धनवती ने हृदय का प्यार बरसाया।अमर ने घनावह सेठ के चरणों में प्रणाम किये। सुन्दरी ने दूर से ही से प्रणाम किये। सेठ ने दोनों को अंत-करूणा की आशीषों से नहला दिया।
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