सुरसुन्दरी की आखों से आंसू टपक ने लगे ,
भाव- विभोर होकर उसने पुनः पंचाग प्रणिपात किया । उत्तरीय वस्त्र के छोर से आँखे पोछ कर वह बोली :
‘गुरुदेव ,आपकी इस प्रेरणा को मै मेरे दिल के भीतर
सुरक्षित रखूंगी। मेरी आपसे एक ही विनती है :परोक्ष रूप से भी आपके आशिर्वाद मझे मिलते रहे …… वैसी कृपा करें !’
सुरसुन्दरी वहाँ से निकल कर साध्वी जी के उपाश्रय में पहुँची । साध्वी जी को वंदना कर के उनके चरणों मे अपना सर रख दिया । साध्वी जी ने उसके सर अपना पवित्र हाथ रखा और आशिर्वाद दिए ।
‘ सुंदरी , आभी कुछ देर पहले ही सेठानी धनवती यहां आकर गयी। तेरे जैसी पुत्र वधु पाने का उनका आनंद आसिम है ….! पितृ गृह को तेरे गुण और संस्कारों से उजागर करने वाली तू ,पतिगृह को भी उज्वल बनायेगी। तेरे सम्यग्ज्ञान ,सम्यग्दर्शन एवम सम्यग्चारित्र , तेरी आत्मा का कल्याण करने वाले होंगे। श्री नमस्कार महामंत्र तेरी रक्षा करेगा और तेरे शील के प्रभाव से देवलोक के देव भी तेरा सानिध्य करेगे । ‘
साध्वी के ह्रदय में वात्सल्य और करुणा का झरना बह रहा था। उस झरने में सुरसुन्दरी नाहा ने लगी।
उसका दिल अपूर्व शीतलता मरहसुसने लगा ।
साध्वी जी को पुनः पुनः वंदना करके वह उपाश्रय के बाहर आई । रथ में बैठ कर राज महल पहुँची ।
राजमहल में सेकड़ो लोगो की आवाज आई चालू हो चुकी थी। महा मंत्री अलग अलग आदमियो को तरह तरह के कार्य सोपे जा रहे थे । एक लोती राज कुमारी की शादी थी । मात्र राज महल ही नही अपितु सारी चम्पानगरी को सजाने सवारने का आदेश दिया था महाराजा अरिमर्दन ने । कारागृह में से कैदियों को मुक्त कर दिए गये थे। दूर दूर के राज्यो में से श्रेष्ठ कारीगरों एवम कलाकारों को बुलाये गए थे ।
राजपुरोहित ने शादी का महूर्त एक महीने बाद का दिया था । एक महीने में राजमहल का रंग रूप बदल देना था । चम्पानगरी के योवन कप सजना था ।
चम्पानगरी की गली गली और मोहहलो में सुरसुन्दरी की शादी की बाते होने लगी –
‘महाराज ने सुरसुन्दरी के लिए वर तो श्रेठ खोजा ।’
‘सुरसुन्दरी के पुण्य भी तो ऐसे ! वरना, ऐसा दूल्हा मिलता कहा?’
‘तो क्या अमरकुमार के पुण्य ऐसे नही ?अरे ,उसे भी तो रूप-गुण से भरीपूरी पत्नी जो मिल रही है।’
‘भई, यह तो विधाता ने बराबर की जोड़ी रची है।’
‘बिल्कुल ठीक, आपन को तो जलन होती है ।’ हजारों लोग तरह तरह की बाते करने लगे ,सभी के होटों पर दोनों की प्रशांसा के फूल खिले जा रहे है ।
चम्पानगरी मानो हर्ष के सागर में डूब गयी हो !
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