सुरसुन्दरी के मन मे विचारो का तुमुल संघर्ष चल रहा था। रात भर वह सोचती रही… कभी क्या ? कभी क्या ? रात बीती। सवेरा हुआ। उसने उठकर श्री नमस्कार महामंत्र का स्मरण किया। दैनिक कार्य निपटाकर वह बैठी बैठी परिचारिका की प्रतीक्षा कर रही थीं। कमरे के दरवाजे खुले ही रखे थे उसने।
परिचारिका दूध लेकर आ पहुंची।
‘ देवी, मेरे आने में देरी हुई क्या ? मुझे तो था कि आप अभी अभी जगी होगी…. यहाँ तो जल्दी कोई उठता ही नही !
‘में तो सोयी ही…फिर जल्दी या देरी से जगने का सवाल ही नही उठता । ‘
क्या यहाँ पर आपको कोई असुविधा है ? आप सोयी क्यो नही ?
‘अभागिन को सुविधा क्या और असुविधा क्या ? यहाँ आने वाली औरत भाग्यशाली हो ही नही सकती न ? ‘
आपकी बात तो सही है….पर यहां आकर तो सुभागी जरूर बन जाएगी। आपके जैसा सौन्दर्य यहाँ है किसका ? इस भवन में नही पर इस पूरे सोवन कुल में आप जैसा रूप किसी का नही होगा !
‘यही तो मेरे दुःखो का रोना है… इस रूप की धूप ने तो मुझे झुलसा रखा है..इस पापी सौन्दर्य ने तो मुझे यहाँ ला फसाया है ।
‘यह तो तुम्हे शुरू शुरू में ऐसा लगेगा..पर तीन दिन बाद जब यहां बड़े राजकुमार और श्रेठीकुमार आएंगे तब यह सब दुःख हवा हो जायेगा।
‘ऐसी बात कर मत मेरी बहन ! मेरे मन में तो मेर अपनेे पति के अलावा अन्य सभी आदमी पितातुल्य या भ्रातातुल्य है..मै तो चाहती हूँ, इन तीन दिनों के भीतर ही मुझे मोत आ जाये। मै नरक में नही जी सकूँगी।
सुरसुन्दरी रो पड़ी। परिचारिका के मन मे निर्णय हो गया कि ‘यह स्त्री किसी ऊँचे खानदान की है.. उसने पूछा: ‘यदि तुम्हे एतराज न हो तो में दो-चार बातें पूछना चाहती हूँ तुमसे ?
‘ पूछ लें न बहन ! मेरे जीवन मे छुपाने जैसा कुछ है भी नही।
तुम्हारा परिचय जानना चाहती हूं…. ओर तुम यहाँ किस तरह आ गयी… यदि मुझे बताया तो..
पर तु जानकर क्या करेंगी ?
‘करुँगी तो क्या ? पर तुम जो कहोगी वो जरूर करूगी !
‘सचमुच ! ‘सुरसुन्दरी ने परिचारिका के कंधों पर अपने हाथ रख दिये !
‘वादा करती हूं !
सुन ले मेरी दास्तान !
सुरसुन्दरी ने शुरू से लेकर अब तक कि सारी बाते सुनी। यक्षद्वीप की… यक्षराज की…बाते सुनकर तो उसे लगा कि ‘जरूर इस स्त्री पर दैवी छाया है। धनंजय की जलसमाधि की बात व बेनातट नगर में हुईं घटना सुनकर.. उसके मन मे सुरसुन्दरी के प्रति सहानुभूति के दीये जल उठे। फानहान की बतमीजी व प्रपंच लीला सुनकर तो उसने उसके नाम पर थूंक दिया….उसके मुँह में से गाली निकल गयी !
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