सून्दरी ने यक्ष से कहाँ – मेरे ही पापकर्मो के उदय से दुखी हुई हूँ | फिर भी अब वह दुःख चला गया |’
‘किस तरह ?’
‘पति छोड़ गए….पर पिता जो मिल गये ! अब में दुःखी नहीं हु |’
‘तू दू :खी हो भी नहीं सकती कभी…. तेरे पास नवकार मंत्र जो है |’
‘मेरा शील अखंड रहे तब तक में सुखी ही हूँ |’
‘बेटी तेरे नवकार मंत्र के प्रभाव से तेरा शील अखंड ही रहेगा | इस व्दीप पर तू तेरी इच्छानुसार रहना और घूमना | मै तुझे चार उपवन बता देता हु | तुझे यह स्थान पसंद आ जायेगा | उपवन में मन चाहे मधुर फल मिलेगे | मीठा -मधुर पानी मिलेगा…और कोमल पर्णों की शय्या मिलेगी|’
‘बस….बस … इस से ज्यादा मुझे और चाहिए भी क्या ?’
‘तो चल , अपन उपवन में चले ,
सुर सुदरी ने इस दौरान काफी स्वस्थता पा ली थी | यक्षराज के साथ वह उपवन की ओर चली|
उपवन में पहुँच कर यक्ष ने उसे प्रणशय्या बता कर कहा : ‘बेटी, यहाँ पर तू रात बिताना | सुबह में मै वापस आकर तुझे यह उपवन एवं अन्य तीन उपवनो में ले चालूगा वहा तुझे कई आश्चयजनक चीजे बताऊगा |’
सुर सुंदरी ने पर्णाशय्या पर विश्राम किया |यक्ष वहा से चला गया।
श्री नमस्कार महामंत्र के स्मरण के साथ सुर सुंदरी ने शय्या त्याग किया | पूरब दिशा में उषा का आगमन हो चुका था | वर्क्ष पर से पक्षीगण उडान भरते हुए दूर- दूर जा रहे थे |सुर सुंदरी खड़ी हुई…..और उपवन मे टहलने लगी | इतने में पीछे से आवाज आयी :
‘बेटी , कुशलता तो हें न ?’ सुंदरी ने पीछे झाका तो यक्ष राज प्रसन्नचित से वहाँ खड़े थे |’
आगे अगली पोस्ट मे …