एक महत्वपूर्ण कार्य तात्कालिक करना होगा सुरसुन्दरी ने कहा।
‘वह क्या ?’ अमरकुमार के मन में आशंका उभरी ।
गुणमंजरी को शीघ्र बुला लेना चाहिए । उसके मन का पूरा समाधान करके ही अपन संयम राह पर चलेंगे ।’
‘मैने मृत्युंजय को बेनातट भेजा ही है । दो-चार दिन में ही वह गुणमंजरी को लेकर लौटना ही चाहिए ।’
‘तब तो बहुत बढ़िया ! दो-चार दिन में अपने माता-पिता की अनुमति-इजाजत ले लें….।’
‘वह तो मिल जायेगी…. इसमें इतनी देर नही लगने की।
‘काफी देर लगेगी…. मेरे नाथ ! राग के बंधन अपन ने तोड़े है, उन्होंने कहां तोड़े है ? मेरे माता-पिता का और आपके माता पिता का अपने पर कितना गहरा राग है ? यह क्या अपन नही जानते है ? देखा नही….? अपन जब गुरुदेव के समक्ष संयमराह पर चलने की बात कर रहे थे तभी उन सब की आंखे आँसुओ से छलकने लग गयी थी !’
‘पर, क्या उनकी इजाज़त लेना जरूरी है ?’
‘बिल्कुल…. उनके उपकारों को तो दीक्षा लेने के बाद भी भुलाने के नही है…! अपन को उच्चतम संस्कार देने का महान उपकार उन्होंने किया है । उन उपकारों का बदला अपन किसी भी कीमत पर नही चुका सकते ! !’
‘पर, मान लो कि उन्होंने इजाज़त न दी तो क्या ?’
‘देंगे…,जरूर देंगे इजाजत ! अपने दिल को क्या कभी भी उन्होंने दुःखाया है ? स्वयं दुःख सहन कर के भी अपन को विदेशयात्रा पर जाने की इजाज़त नही दी थी क्या ?’ वैसे ही, वह अपनी तीव्र इच्छा देखकर, अपने सुख के लिए अवश्यमेव अनुमति देंगे ।’
‘गुणमंजरी यदि सहमत नही हुई तो ?’
‘मै उसे सहमत कर लूँगी….। हा, अपनी संसारत्याग की बात सुनते ही पहले तो वह बेहोश हो ही जायेगी…। करुणा रुदन करेगी, पर आखिर वह भी सहमत हो जायेगी । उसे इस बात का बड़ा गहरा दुःख रहेगा कि वह खुद अपने साथ चारित्र नही ले सकेगी ! पुत्र पालन की बड़ी जिम्मेदारी उसके सर पर आई है…. और फिर वह पुत्र तो चंपा का भावि राजा भी है !’
‘वह जल्दी लौट आये तो अच्छा !’
‘वह न आये तब तक अपन माता-पिता की अनुमति प्राप्त कर लें….। आप आपके माता-पिता की अनुमति प्राप्त कर लें, मै मेरे माता-पिता को समझाने की कोशिश करूंगी ! हालांकि मुझे तो आपकी इजाज़त मिल गई है, फिर और किसी की इजाज़त की जरूरत नही है । पर फिर भी माता-पिता का स्नेह असीम है…. इसलिए उनके मन को समझाना-सहलाना भी जरूरी है ।’
आगे अगली पोस्ट मे…