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एक अस्तित्व की अनुभूति – भाग 4

महाराजा गुणपाल तो सुरसुन्दरी की जीवन कहानी सुनकर स्तब्ध हो उठे ।

‘सुरसुन्दरी…. बेटी, श्री  नवकार मंत्र का प्रभाव तो अदभुत है ही… पर तेरा सतीत्व कितना महान है ! उस सतीत्व के प्रभाव से ही तेरे सारे दुःख दूर हुए…. सुख आये…. राज्य मिला  ।’

‘महाराजा, उस सतीत्व की सुरक्षा नवकार मंत्र के प्रभाव से ही हो पायी ! यदि वह महामंत्र मेरे पास नही होता तो मै जिन्दा ही नहीं रहती  ! !’

‘तेरी बात बिल्कुल सही है बेटी… पर  अमरकुमार ने तेरे साथ भयंकर अन्याय किया है  !’

‘मेरे ही पूर्वजन्म के पापकर्म उदय में आये । वर्ना उनके जैसे गुणी पुरुष मेरा त्याग करे ही नही ! हर एक आत्मा को अपने किये हुए शुभाशुभ कर्म भुगतने ही पड़ते है । मेरे अशुभ कर्म उदय में आये… और भुगत गये… फिर शुभ कर्मों का उदय हुआ तो रत्नजटी जैसा विद्याधर भाई मिल गया। चार चार भाभियां मिली… विद्याशक्तियां मिली… फिर आप जैसे पितातुल्य महाराजा मिले…. गुणमंजरी मिली… और उनका भी वापस मिलना हो गया  !’

‘बेटी, तेरा जीवनव्रतांत सुनकर मेरी नवकार मंत्र पर की श्रद्धा सुदृढ़ बनी है…. धर्म पर का विश्वास मजबूत हुआ है ।’

‘पिताजी, अब एक महत्वपूर्ण कार्य करने का है…’

‘बोल बेटी…. तू जो कहे वह करने को मै तैयार हूँ  ।’

‘गुणमंजरी को समझाने का  !’

गुणपाल राजा पलभर के लिए गहरे सोच में डूब गये ।

‘उसे ऐसा महसूस नही होना चाहिये कि मैने उसके साथ छलना की है। मेरी परिस्थिति, स्थति का सहज सविकार कर ले आनंद से, तो मुझे भी खुशी होगी । यदि उसे तनिक भी दुःख होगा तो मेरी वेदना का पार नही रहेगा ।

‘तेरी बात सही है… परन्तु गुणमंजरी पर मुझे पूरा भरोसा है । जब वह तेरी कहानी सुनेगी तब तेरे पर उसका प्रेम शतगुण बढ़ जायेगा। मैने उसे बचपन से ही गुणानूरांग का संस्कार घूंट घूंट कर पिलाया है….। मेरी  बेटी गुणानुरागिणी है… उसकी तू जरा भी चिन्ता मत कर !’

‘वह समझ जायेगी…. बाद में  ?’

‘उसकी शादी अमरकुमार के साथ करेंगे ।’

‘मै भी यही सोच रही थी । हम दोनों बहनें साथ रहेंगी… साथ जियेंगी…। उसे किसी भी तरह की पीड़ा नही होने दूँगा ।’

‘वह तो मुझे भरोसा है ही। ।’

‘तो मै अब जाऊँ ?’

‘नही…. तू थोड़ी देर रुक जा, मै गुणमंजरी को बुलवा कर अभी ही बात कर देता हूं…..। गुणमंजरी की माँ को बुलवा लेता हूँ ।’

‘तो मै तब तक पास के खंड में बैठती हूं । आप बात कर ले, बाद में मुझे बुला लेना ।’

सुरसुन्दरी पास के खंड में चली गई । महाराजा ने गुणमंजरी और महारानी को बुला कर सारी बात अथ से इति तक सुना दी । गुणमंजरी के आश्चर्य की अवधि न रही । खुद ने एक औरत से शादी की है, यह जानकर वह सहम सी गयी । महारानी भी विस्मय से मुग्ध हो उठी ।

‘अब मै सुरसुन्दरी को बुलाता हू ।’

‘क्या वह यही पर है ?’

‘हाँ….’महाराजा खड़े हुए । पास खंड में जाकर सुरसुन्दरी को ले आये । गुणमंजरी और उसकी माँ सुरसुन्दरी को देखते ही रहे…. गुणमंजरी…. खड़ी होकर सुरसुन्दरी से लिपट गयी ।

आगे अगली पोस्ट मे…

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