नारी का शील -रत्न तो संसार का श्रृंगार है। दुनिया का सौभाग्य है स्त्री एवं सागर यानी मर्यादा के पुरस्कर्ता। वे कभी भी मर्यादा का उल्लंघन नही करते।
मर्यादावान सागर के उत्संग में सुरसुन्दरी अपनी मर्यादा का जतन कर रही थी ।अपने शीलरत्न की भलीभांति सुरक्षा कर रही थी। वह थी तो व्यापारी की पत्नी पर उसकी नस नस में क्षत्राणी का खून बह रहा था। सोहन कुल के किनारे पर फानहान ने अपने जहाजो का लंगर डाला। उसने सुरसुन्दरी से कहा ,-यदि तेरा मन हो तो सोवन कुल नगर में तेरे पति की तलाश कर। अपन नगर में चले ।
वे यहा नही हो सकते। उनके जहाज भी इस किनारे पर नजर नही आ रहे है । नही दिखते तो क्या हुवा? क्या पता तुझे दुखी करने के बाद वह आफत में फस गया हो । उसके जहाज डुब गये हो या लुट गये हो ,,,ओर वह खुद रास्ते का भटकता भिखारी हो गया हो ,,,किसी नगर की गलियों में ।ऐसा नही हो सकता क्या?
नही नही ऐसी बुरी बाते मत करो । ऐसा अशुभ मत बोलो। मै तो हमेशा उनके मंगल की कामना किया करती हूँ। उनका शुभ हो,,,फिर भी यदि तुम कहते हो तो अपन इस नगर में चले । कोई सिहलद्वीप का नगरजन मिल जाय तो उससे भी अमरकुमार के बारे में पूछ सकेंगे । सही कहना है तेरा ।चल अपन चले।
सुरसुन्दरी को लेकर फानहान ने सोवनकुल नगर में प्रवेश किया । नगर की सजावट देखते देखते दोनो नगर के मध्य भाग में आ पहुँचे । वहा पर फानहान के जहाज के रक्षक सैनिक पहले ही से उपस्थित थे ।अचानक फानहान ने सुरसुन्दरी की ओर पलट कर तीखी जबान से कहा-
‘ओ मदान्ध नारी, अभागिनी औरत, यही पर बिल्कुल खड़ी रह जा ।कही भी इधर उधर भागने की तनीक भी कोशिश मत करना । मेरे सैनिक तैनात है चौतरफ ।तेरा पति तुझे खरिदने के लिये अपने आप चला आयेगा। यहा तुझे में पूरे सवा लाख में बेचूँगा ।तेरी नीलामी लगाऊँगा ।समझी न? बहुत रूवाब लगा रही थी । चूपचाप खड़ी रहना।
सुरसुन्दरी फानहान के इस बदले हुए रूप को देखकर सदमे से शुन्यमन्स्क हो गयी । फानहान का इतना घिन्नोना रूप देखकर उसकी वाचा मर चुकी थी।
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