सुरसुन्दरी का आन्त: कर्ण चीख रहा था : यह व्यापारी भी धनजय जीतना ही लंपट है….तू जरा भी लापरवाह मत रहना | इसकी आवभगत में लुभा मत जाना | उसके शब्दों में फसना नहीं | परायी स्त्री, रूप और जवानी, एकांत….विवशता….इन सब का मतलब, आदमी ललचाये बेगेर नहीं रहेगा | एक हादसा हो चूका है….|’
सुरसुन्दरी हरपल ~ हर क्षण सावधान रहकर जी रही है | फानहान उसे खुश करने की हरचन्द कोशिश करता है, पर जब उसने देखा की सुरसुन्दरी तो उसको तनिक भी आगे नहीं बढ़ने दे रही है और न हो प्यार जाता रही है, उसने मन ही मन तय किया, खुल्लमखुला शादी का प्रस्ताव रखने कब यदि मान जाय तो ठीक, आन्यथा उसने बलात्कार करने का निश्चय कर लिया | उसका सब्र अब जवाब दे रहा था।
सुन्दरी हमेशा की भांति श्री नवकार का जाप करके बैठी थी …इतने में फानहान उसके पास आया | सुरसुंदरी ने स्वागत किया पर उखड़े उखड़े मन से |
‘सुंदरी तू उदास क्यों रहती हें ? तुझे यहाँ किसी तरह की असुविधा हो तो बात कर ! तुझे उदास पाकर मेरा मन व्याकुल हो उठता है |’ फानहान ने सुरसुन्दरी से कुछ दुरी पर डेथ ते हुए कहा |’
आप जानते ही हो की मरे पति का मुझे विछोह है और कोई भी औरत अपने पति की जुदाई में उदास रहे यह तो बिलकुल सोभाविक है |’
‘पर क्यों रहना चाहिए औरत को? पति की कमी को पूरा करने वाला आदमी मील जाये तो उसे सुविकर कर लेना चाहिए |’
‘यह बात आपके देश में होती होगी | हमारे देश की संस्क्रती अलग है | हमारे देश मे तो औरत के लिए एक ही पति होता है | पति की मोत के बाद भी वह औरत किसी दुसरे आदमी के साथ शादी नहीं कर सकती | वह अपनी इच्छा से वैधव्य का पालन करेगी |’
‘अब तू कहा तेरे देश में है ? मे तुझे मेरे देश में ले चलूगा | मै तुझसे यही बात करने आया हु की तू मेरे साथ शादी कर ले अपन चलेगे मेरे देश में | जहा सवर्ग के सुख भोग आपने लिए होगे !’
सुरसुन्दरी गुस्से से बोखला उठी | जिस बात की आशंका थी….आखिर फानहान का वो घिनोना रूप सामने आगया |
आगे अगली पोस्ट मे…