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सुर और स्वर का सुभग मिलन – भाग 7
‘मंजरी, तुझे वीणावादन सुनना अच्छा लगता है ना ?’ ‘एकदम ! ! आज दिन तक तो दूर ही से केवल ध्वनि सुनती थी….अब से तो…आज तो दर्शन और श्रवण दोनों मिलेंगे, धन्य हो जाऊँगी !’ ‘देवी….,संगीत के सहारे अपन अपने प्रेम को दिव्य तपश्चर्या में ढाल देंगे…। अपना प्रेम आत्मा से आत्मा का, दिल से दिल का प्रेम बनेगा ।…
सुर और स्वर का सुभग मिलन – भाग 6
‘देवी, आश्चर्य हो रहा है ना ? अजीब सा लग रहा है ना ? और कोई कल्पना में मत जाना। अपन को कुछ दिन इसी तरह गुजारने होंगे !’ ‘पर क्यो ?’ गुणमंजरी अचानक बावरी हो उठी….. वह पलंग पर से उठकर आकर विमलयश के चरणों मे बैठ गई…। ‘मैने एक प्रतिज्ञा की थी…!’ ‘प्रतिज्ञा ? कब ? किसलिये ?’…
सुर और स्वर का सुभग मिलन – भाग 5
राजकुमारी गुणमंजरी की शादी के समाचार बेनातट राज्य के गाँव गाँव और हर नगर में प्रसारित किये गये।मित्रराज्यो में भी समाचार भिजवाये गये। गुणमंजरी एवं विमलयश के रूप-लावण्य की चौतरफ प्रशंसा होने लगी। उनके सौभाग्य के गीत रचे जाने लगे ! चारो तरफ से राजा लोग, राजकुमार, श्रेष्ठिजन, श्रेष्ठिकुमार…. कवि…. कलाकार वगैरह आने लगे । शादी के मंडप को केलपत्र,…
सुर और स्वर का सुभग मिलन – भाग 4
प्रफुल्लित होकर विमलयश ने खंड में जाकर वस्त्र बदले। शुद्ध–सफेद वस्र पहनकर वह ध्यान मै बैठ गया पद्मासनस्थ बनकर । रात्रि का दूसरा प्रहर बीतने को था । विमलयश ध्यान में गहरे उत्तर गया था …..। एक दिव्य प्रकाश का वर्तुल उभरा… अदभुत खुश्बु फैलने लगी खंड में…. और शासनदेवी स्वयं प्रत्यक्ष हुई । ‘बोल, सुंदरी ! क्यों मुझे याद…
सुर और स्वर का सुभग मिलन – भाग 3
विमलयश के दिमाग के दरिये में एक के बाद एक सवालो की तरंगें उठने लगी । ‘उन्हें प्रभावित करने के लिए मुझे कोई नाटक तो करना ही होगा ! ….. इस वेश में, मै नाटक भी अच्छा कर पाऊँगा…..! और फिर अब तो मैं राजा भी हूँ इसलिए उन्हें प्रभावित करने का रास्ता सरल हो जाएगा ! मै इस वेश…