Archivers

राजमहल में – भाग 6

भोजन तैयार हो गया था। मालती ने विमलशय को प्रेम स आग्रह करके भोजन करवाया। भोजन के पश्चात विमलशय यही पर बैठा। मालती ने भी भोजन कर लिया। विमलशय ने मालती से कहा : मालती, महाराजा बहुत उदार है, नही ? है तो सही, पर तुम्हारी तुलना नही हो सकती। तू तो बस जब देखो तब मेरे ही गुणा गाने…

Read More
राजमहल में – भाग 5

राजसभा पूरी हो गयी। विमलशय मालती के साथ घर पर पहुँचा। रास्ते मे मालती एक अक्षर भी नही बोली। विमलशय ने घर पर आते ही मालती से कहा- मालती। मालती की आंखों की आँसू थे। तू रो रही है ? क्यों ? में चुंगी नाके का मालिक हुआ यह तुझे अच्छा नही लगा ? वह तो अच्छा लगा, पर तुम…

Read More
राजमहल में – भाग 4

विमलशय ने महाराजा को प्रणाम किया। राजा गुरपाल तो विमलशय के सामने देखता ही रहा ठगा-ठगा सा। सौन्दर्य से छलकता गोरा-गोरा मुखड़ा कान तक खिंचे हुए मदभरे नैन गालो पर झूलती केश की लटे कानो में चमकते-दमकते दिव्य कुंडल गले मे सुशोभित होता नवलखा हार अंग अंग में से फूटती योवन की आभा। साक्षात जैसे कामदेव। महाराजा गुरपाल की असीम…

Read More
राजमहल में – भाग 3

महाराजा आपको याद कर रहे है। आपका बनाया हुआ दिव्य जादूई पंखा कमल श्रेष्ठी ने महाराजा को भेंट किया है। वह देखकर, उसका प्रभाव जानकर, उस पंखे की रचना करने वाले महान कलाकार के दर्शन करने के लिए महाराजा आतुर है।आपको लिवाने के लिए हमे पालकी लेकर भेजा है। में भी कलाकार की कला का मूल्यांकन करने वाले बेनातट नगर…

Read More
राजमहल में – भाग 2

विमलशय ने दूसरे दिन नित्यक्रम से निव्रत होकर मालती को अपने पास बुलायी और उसे पच्चीस हजार रुपये भेंट दे दिये। उस वक्त मालती को विमलयक्ष मे भगवान का दर्शन हो गया। वह भावविभोर होती हुई विमलयक्ष के चरणों मे लेट गयी। ओ परदेशी राजकुमार! क्या तू कर्ण का अवतार है ? तूने तो मेरे जनम जनम की दरिद्रता दूर…

Read More

Archivers