सुरसुंदरी देखती ही रही…. रत्नजटी के विमान को जाते हुए ! जब तक विमान देखता रहा… वो आकाश मे ताकती रही । वीमान दिखता बंद हुआ और सूरसुन्दरी धैर्य गँवा बेठी। ज़मीन पर ढेर हो गयी और फुट फुट कर रोने लगी । भाई के विरह की वेदना से व्याकुल हो उठी। दो घटीका उसने वैसे ही बेठे बेठे बीता…