Archivers

सवा लाख का पंखा– भाग 6

‘पर देख ! विमलयश ने कहा- पंखे की विशेषता पहले से सबको बता मत देना । कोई योग्य ग्राहक पूछे तो उसे बताना!’ पंखा लेकर मालती चली आयी नगर के मुख्य चौराहे पर । वहाँ पहुँचकर अच्छी जगह देख कर खड़ी रही और फ़िर बोलने लगी : ‘पंखा ले लो भाई पंखा ! सवा लाख रुपये का पंखा ! लेंना…

Read More
सवा लाख का पंखा– भाग 5

एक रात को विमलयश के दिमाग मे एक विचार कौंधा….। अमरकुमार का मिलन तो इसी नगर मे होने वाला है, परंतु वो मिले इस से पहले मुझे मेरे वचन को सिध्द कर देना चहिये । जब उन्होने ‘सात कौड़ी मे राज्य लेंना !’ वेसा लिखकर मेर त्याग किया है । बचपन मे, नादानी मे, मेरे कहे गये शब्द उन्होने वापस…

Read More
सवा लाख का पंखा– भाग 4

‘मालती इस नगर के राजा का नाम क्या है ?’ गुणपाल ।’ उसके कितने बेटे है ?’ ‘केवल एक ही बेटी है…..। बेटा है नही ! बेटी बड़ी प्यारी और सलोनी है !’ क्या नाम है उसका ?’ ‘गुणमंजरी ! ‘ अच्छा …अरे मालती …. तेरा आदमी तो दिखा ही नही ! ‘ ‘वो शाम को आयेगा….बाहर गय हुआ है…

Read More
सवा लाख का पंखा– भाग 3

नही …. स्नान तो मेने कर लिया है ….. मेै अब नगर मे जाऊँगा परीभ्रमण के लिये । मध्यानँह मे वापस आ जाऊँगा ।’ बाजार मे से कूछ लाना हो तो लेता आऊ ।’ नही रे बाबा … ऐसी कोई चिंता तुम्हे थोड़े ही करनी है ? यदि तुम्हे कूछ चहिये तो मुझे कहना , मै ला दूँगी । तुम…

Read More
सवा लाख का पंखा– भाग 2

सूरसुंदरी ने अपना नाम विमलयश रख लिया । उसे मलिन के घर रहना ही ज्यादा ठीक लगा । एक पेटी मलिन ने उठाई -दूसरी पेटी उठाकर विमलयश चला । मलिन ने अपने मकान पर आकर एक सुंदर-सुविधापुर्ण कमरा खोल दिया । विमलयश को कमरा पसंद भी आ गया । क्यों परदेशी राजकुमार …..मेरी झोपडी पसंद आयेगी ना ?’ मलिन ने…

Read More

Archivers