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विदा, मेरे भैया ! अलविदा, मेरी बहना! – भाग 3
चार विद्याओ की प्राप्ति से उसे अपनी महत्वकांशा साकार होती देखी ।चारो भाभियो के प्रति सुरसुन्दरी भाववीभोर हो उठी । ‘तुमने तो मुझे मेरे जितने उपकार ठाले दबा दिया ।’ नही ….ऐसा मत बोलो , दीदी …. यह तो हम क्या दे रहे है ? कुछ भी नही ! हम कोई तुम्हारे पर एहसान थोड़े ही कर रहे है ?…
विदा, मेरे भैया ! अलविदा, मेरी बहना! – भाग 2
सुरसुन्दरी मोन रही…. उसके चेहरे पर विषाद की बदली तेरने लगी। ‘दीदी…. फिर कभी अपने भाई को याद कर के यहा आओगी ना ? हमे भुला तो नही दोगी? रविप्रभा का स्वर वेदना से छलकने लगा था । भाभी….जैसे भाई को नही भुला सकूँगी जिंदगी भर ….. वैसे तुम जैसे मेरी प्यारी प्यारी भाभियो को भी नही भूल पाऊंगी…. पलभर…
विदा, मेरे भैया ! अलविदा, मेरी बहना! – भाग 1
रानियों के अनुभव से रत्नजटी ने और ज्यादा तीन महीने सुरसुन्दरी को अपने पास रखा । पर वह अपने आप पर पूरा निंयन्त्रण रख रहा था। कभी भी मन विवश ना हो उठे , इंद्रिया चंचल ना हो जाये , इसके लिए वह पूरी तरह सजग रहने लगा था । देखते ही देखते तीन महीने तो गुजर गये…. उसने अपनी…