Archivers
विदा, मेरे भैया ! अलविदा, मेरी बहना! – भाग 8
‘मेरे प्यारे भैया …..मेरी एक बात सुनो ….तुम तो मेरे मन मे बस गए हो ….इस देह में जब तक प्राण है …. तब तक तो मै तुम्हें नही भुला पाउंगी … तुम्हारे तो मेरे पर अनंत अनंत उपकार है …..। तुम्हारे उपकारों के कैसे भुलाऊँ ?मेरे वीर मेरे भैया दिन-रात ,आठो प्रहर तुम्हारा नाम मेरे होंठो पर रहेगा….. तुम्हारी…
विदा, मेरे भैया ! अलविदा, मेरी बहना! – भाग 7
रत्नजटि ने बेनातट नगर के बाहर उद्यान के एकान्त कोने में विमान को उतारा। रानियों द्वारा विमान में रखे हुए वस्त्रालंकार बगैरह भी उसने बाहर निकालकर सुरसुन्दरी के पास रखे। रत्नजटि ने सुरसुन्दरी के सामने देखा। सुरसुन्दरी ने भी रत्नजटि की तरफ भरी भरी आंखों से देखा।बहन… कैसे वापस लौटू? मेरे पैर नही उठ रहे हैं। इतने दिन सुख में…
विदा, मेरे भैया ! अलविदा, मेरी बहना! – भाग 6
सुरसुन्दरी रानियों के साथ अपने कमरे में आयी । रानियो ने सुरसुन्दरी के लिए वस्त्र, कीमती गहने…. और कुछ दिव्य वस्तुए तैयार की। सबसे छोटी रानी ने एक दिव्य पंखा सुरसुन्दरी के हाथों में थमाते हुए कहा : ‘यह एक दिव्य पंखा है…. यदि बुखार से पीड़ित किसी व्यक्ति पर यह पंखा डाला जाए तो उसका बुखार अवश्य उतर जाएगा।…
विदा, मेरे भैया ! अलविदा, मेरी बहना! – भाग 5
‘अपन कल सवेरे यहा से बेनातट नगर के लिए चल देंगे । रत्नजटी ने कहा आज दोपहर में भोजन के बाद नगर में ढिंढोरा पिटवा देता हूं…. की ‘कल बहन यहा से चली जायेगी…. जिन्हें भी बहन के दर्शन करना हो …. आ जाये !’ रत्नजटी सुरसुन्दरी के आवास से निकला ।अपने खंड में चला गया ।सुरसुन्दरी जाते हुए रत्नजटी…
विदा, मेरे भैया ! अलविदा, मेरी बहना! – भाग 4
दिन डलने लगा। रात छाने लगी’, पर बेचैनी का साया पूरे महल पर इस कदर छाया हुआ था कि स्याह रात ढल गयी पर उदासी का अंधेरा ज्यादा गहराने लगा। अब सुरसुन्दरी इस महल मे केवल एक ही दिन और एक ही रात रहने वाली थी। प्रभातिक कार्यो से निवृत होकर रत्नजटी स्वयं सुरसुन्दरी के कक्ष में गया । सुरसुन्दरी…