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राज को राज ही रहने दो – भाग 2
सुरसुन्दरी ने विनयपूर्वक मुनिराज से पूछा: गुरुदेव अभी मेरे पापकर्म कितने बाकी हैं ? कहा तक मुझे इन पापकर्मो का भुगताना पड़ेगा कृपा करके.. भद्रे अब तेरे पापकर्म करीब करीब भुगत गए है … अब भी जरा सतप्त मत बन। बेनातट नगर मैं तुझे तेरे पति का मिलन हो जायेगा। अब तू निर्भय एवं निश्चित रहना। गुरुदेव, अपने मेरे भविष्य…
राज को राज ही रहने दो – भाग 1
सोम्य मुखाकृति ! स्यंमसुवासित देहयष्टि ! तप के तेज से चमकती आँखे ! दिव्य प्रभाव का उजाला फैलाता हुआ आभामंडल ! मनिशंख मुनिराज के दर्शन कर के सुरसुन्दरी के नयन उत्फुल्ल हो उठे। उसका ह्रदय कमल खिल उठा ! रत्नजटी एवं सुरसुन्दरी ने सविधि वंदना की। दोनों मुनिराज के सामने विनयपूर्वक बैठ गये। मुनिराज ने धर्मलाभ का गम्भीर स्वर में…