नारी का शील -रत्न तो संसार का श्रृंगार है। दुनिया का सौभाग्य है स्त्री एवं सागर यानी मर्यादा के पुरस्कर्ता। वे कभी भी मर्यादा का उल्लंघन नही करते। मर्यादावान सागर के उत्संग में सुरसुन्दरी अपनी मर्यादा का जतन कर रही थी ।अपने शीलरत्न की भलीभांति सुरक्षा कर रही थी। वह थी तो व्यापारी की पत्नी पर उसकी नस नस में…