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फिर वो ही हादसा – भाग 2
‘अरे, ओ औरत। भाग … किसी मकान में घुस जा । वर्ना मर जायेगी …. हाथी तुझे कुचल डालेगा पैरों तले । जल्दी चढ़ जा कहीं पर । ओ भली औरत …. जा… जा… जल्दी जा ?’ पर सुरसुन्दरी तो गुमसुम सी चलती ही रही राजमार्ग पर । इतने में उसके सामने से दौड़ते हुए आ रहे मदोन्मत्त हाथी को…
फिर वो ही हादसा – भाग 1
अंधियारे आकाश का साया था सर पर । मुसलाधारा पानी बरस रहा था । बरसात की घनघोर रात उत्तर आयी थी । ऐरेगोरों के दिल फट पड़े वैसी बिज – लियां चमक रही थी। महासागर की तूफानी तरंगे ऊँची – ऊँची उछल रही थी । सगर्भा स्त्री का प्रसव हो जाय उतनी भयानक गर्जना उठ रही थी समुद्र में ।…