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नई कला – नया अध्य्यन – भाग 9
सेठ धनानद शाम को भोजन के समय घर पर आ गये पिता पुत्र ने साथ बैठकर भोजन किया धनवती पास में बैठकर दोनों को भोजन करवा रही थी और वही उसने बात छेड़ी अमर का विधा अध्धयन तो पूरा हो चूका है। अनेक कलाए उसने सिख लि है। अब ।अब उसे पेड़ी पर ले जाऊ ताकि व्यापर सिख समझने लगे…
नई कला – नया अध्य्यन – भाग 8
धर्म की कला यदि नहीं सीखे तो फिर इन सभी कलाओ का करना क्या? क्या महत्त्व इनका? धर्म के बिना तो सारी कलाए अधुरी है। सुरसुन्दरी की यह बात को सुनकर माता धनवती ने कहा- बेटी बिल्कुल सही बात है तेरी धर्म का बोध तो होना ही चाहिए। यह तो संसार है। संसार में सुख और दुःख तो आते जाते…
नई कला – नया अध्य्यन – भाग 7
धनवती ने आश्चर्य से पुछा- ‘क्यों बेटी, साध्वीजी के लिये क्यों पूछ रही है ?’ ‘मुझे उनके पास धर्म का बोध प्राप्त करने जाना है।’ – सुरसुन्दरी ने कहा ‘साध्वीजी के पास धर्म का ज्ञान प्राप्त करना है ?’ धनवती के लिये यह दूसरा आश्चर्य था। ‘पर बेटी … तूने चौसठ कलाओं में निपूर्गत प्राप्त की है…. और फिर तू…
नई कला – नया अध्य्यन – भाग 6
सुरसुन्दरी को रथ से उतरते देख अमरकुमार तुरन्त मां के पास जाकर बोला। ‘मां, राजकुमारी आयी है अपनी हवेली में।’ धनवती चौकति हुई खड़ी हुई और उसे लेने के लिये सीढ़ी पर पहुँची और इतने में तो सुरसुन्दरी ने धनवती के पैर छुए। ‘अरे, बेटी, यहा पर यों यकायक ? मुझे कहलाना तो था? मैं तो रसोई में थी। यह…
नई कला – नया अध्य्यन – भाग 5
मां के मुहँ से अमरकुमार का नाम सुनकर सुरसुन्दरी पुलकित हो उठी। राजा ने अमरकुमार का नाम सुनते ही रानी से कहा : ‘हाँ , अभी पंड़ितजी भी अमरकुमार की बहुत तारीफ़ कर रहे थे, बेटी, अमरकुमार तुम्हारी पाठशाला में श्रेष्ठ विद्यार्थी है, क्यों ?’ ‘हाँ पिताजी, पंड़ितजी की अनूपसथति में वह ही सबको पढ़ाता है। उसकी ग्रहरणशक्ति और समझाने…