आज की युवा पीढ़ी को रूपये से ज्यादा डालर और दिनार मे रूचि है। वह पढते- पढते अपने लिए सपने सजाने लगते है- विदेश मे जा कर नौकरी करने का पहले से विचारधारा कर लेते है। उन्हे देश से ज्यादा विदेशो मे झंखना रहती है। परंतु आप अगर ऐसा विचार कर रहे है तो एक बार सोचना- कही आपका निर्णय गलत न हो जाए।
अभी- अभी एक NRI से मिलना हुआ। वह यहाँ पर पढ लिखकर अमेरिका मे सेटल हो गया था। उसके लिए अमेरिका सब कुछ हो चुका था।
किसी कारण से वह अमेरिका से भारत लोटा। यहाँ आने के बाद उससे मुलाकात हुई। मै ने उससे पुछा की- यहाँ के शिष्य जो विदेश मे नौकरी करने का विचार कर रहे है उनके लिए आप भारत से बाहर मे आपको क्या लगता है?
नौजवान ने बडा अच्छा उत्तर दिया कि- गुरुदेव उन्हे दो वक्त की रोटी यहाँ पर मिलती है तो उन्हे कदापि विदेश नही जाना चाहिए। मुझे वहाँ बहुत कुछ सहन करना पडा है। वहाँ आपके साथ कोई भी नही रहता है। अगर मै ने आपको सब कुछ विस्तार मे बताया तो शायद पुस्तक पुरी भर जाएगी।
आज मै बहुत सुखी हूँ। परंतु इस सुख को प्राप्त करने के लिए मै ने बहुत संघर्ष किया है। और उस संघर्ष के बाद मै सफल हुआ हूँ। परंतु मेरे अन्दर की परार्थ परायणता समाप्त हो गई। मै वहाँ जाकर सम्पूर्ण स्वार्थी बन गया। और शायद इसमे मै ने शूरू मे जो संघर्ष करा वही मुझे खुब स्वार्थी बना गया।
इसलिए, भले ही हमारे देश मे हमे सिर्फ खाने को दो वक्त का मिले परन्तु यहाँ पर हमारे संस्कार सुरक्षित है। और अगर यह संस्कार सुरक्षित है तभी हमारे मे भारतीयता जीवन्त रहेगी। और हमे पैसो के लोभ मे आकर कभी भी हमारी सभ्यता नही छोडनी चाहिए।
बस आप यही रहकर एक उज्ज्वल भारत का फिर से पुनः निर्माण करो और भारत के विश्व गुरु की छवि वापिस जीवन्त करो ।।