Archivers

परिग्रह हमे कहाँ तक ले जायेगा

इस जगत में सबसे बड़ा पाप कौन सा है??
कोई बताएगा हिंसा, तो कोई बताएगा झूठ, कोई बोलेगा चोरी, कोई बोलेगा अब्रह्
परन्तु मेरी अपेक्षा जो पाप जीव को पाप रूप नही लगे वह पाप ही सबसे बड़ा पाप हैं।
आज के काल की अपेक्षा से विचारेंगे तो परिग्रह वह सबसे बड़ा पाप है कारण स्पष्ठ हैंजीव को हिंसा, चोरी, झूठ, अब्रह्म वगैरे आज भी पाप रूप लगते है। परन्तु परिग्रह कभी भी पाप रूप क्या लगता हैं?? तिजोरी में रुपये की थप्पी भरते हुए मन में ऐसा विचार आता है कि मै रुपये नही बल्कि साप को इक्कठा कर रहा हूँ? लगभग हमे ऐसा विचार नही आता हैं। परिग्रह जीव को पाप रूप लगता ही नही हैं।
संसारियों को तो सम्पति में स्वर्ग की सीडी दिखाई देती है। जबकि साधु संत उसको नरक का नेशनल हाइवे समझते है।
एक बार की बात हैएक महान संत काशी नरेश को प्रतिबोध करने के लिए पधारे थे। एक सप्ताह तक उन्होंने रोज काशी नरेश को धर्मबोध दिया और राजा संत से खुब ज्यादा प्रभावित हुआ। संत ने आगे के गाँवो में जाने के लिए काशी नरेश से अनुमति माँगी। राजा ने जैसे ही अनुमति दी संत वहाँ से आगे के गाँवो में जाने के लिए तैयार हो गए। राजा ने खंजाची से कह कर सोना मोहर से भरी थैली मंगवाई। जैसे ही राजा उस थैली को संत को देने गए वही संत ने कहाँहे राजन् ! आप यह क्या कर रहे है? मेने तो आपको स्वर्ग का मार्ग दिखाया और तुम मुझे नरक का मार्ग बता रहे हो?? और दूसरे ही श्रण सोनामोहर से भरी थैली की तरफ नज़र डाले बिना ही महात्मा राजमहल छोड़कर चले गए। काशी नरेश तो उनकी ओर देखते ही रह गए।

किसी ग्रंथ का प्रसिद्ध एक वाक्य मुझे याद आया
सोय के नाके में से अभी भी आसानी से ऊँट निकल सकता हैं। परन्तु प्रभु के राज्य में धनवान का प्रवेश सरलता से नही हो सकता है।

सम्यग्दृष्टि देव जब मृत्यु पाते है तब महासुखी होते है।

जबकि मिथ्यादृष्टि देव मृत्यु के समय महादुखी होते है। कारण की उन्हें होता है अब यहा से छूटे है, चरित्र को ग्रहण करेगे। जबकि मिथ्यादृष्टि को होता है कि अब मुझे मनुष्यलोक के दुखो को सहन करना पड़ेगा।
हमारी दृष्टि को सम्यग्दृष्टि देवो की तरह बनाना जो जीवन का उत्थान करे, आत्मा को अर्हम में बदलने के मार्ग पर आगे बढ़ाये।।

धीरज के फल मीठे होते है
October 3, 2016
निष्टा के साथ काम करने वालो का नसीब भी साथ देता है।
October 12, 2016

Comments are closed.

Archivers