एक साधु महात्मा उनके कई सारे शिष्यो के साथ नदी पर स्नान करने के लिए गए। वहाँ पर एक परिवार के लोग ज़ोर जोर से आवाज़ करके एक दूसरे से झगड रहे थे।
तभी गुरु शिष्यो की ओर स्मित करते हुए बोले तुम को पता है की लोग जब गुस्से में होते है तो एक दूसरे से क्यों जोर-ज़ोर से बोलकर बात करते है?
शिष्यो ने थोड़ी देर विचार विमर्श किया फिर एक शिष्य ने जवाब दिया की mind पर का काबू घुमने के कारण लोग ज़ोर-ज़ोर से बोलते है।
महात्मा बोले की जब सामने वाला व्यक्ति पास ही है तो फिर ज़ोर से बोलने की क्या जरुरत? आप को जो भी कहना है वो धीमी आवाज़ से भी तो बोला जा सकता है।अन्य शिष्यो ने भी जवाब दिया परन्तु महात्मा किसी के भी जवाब से संतुष्ट नही हुए। शिष्य संतोषकारी जवाब नही दे सके।
अंत में महात्मा ने स्मित के साथ समझाया की जब भी दो व्यक्ति एक दूसरे पर गुस्सा करते है तो उनके ह्रदय एक दूसरे से दूर हो जाते हैं। और यह अंतर बड़ा होने के कारण एक दूसरे को समझने के लिए जोर-जोर से बोलने की जरुरत पड़ती है। जिससे वह एक दूसरे को सुन सके। वह एक दूसरे पे जितना ज्यादा क्रोध करेगे उतना उन दोनों के बीच का अंतर ज्यादा होगा। और उनको एक दूसरे को सुनने और समझने के लिए जोर से बोलना पड़ेगा।
जब दो व्यक्ति एक दूसरे के प्रेम में होते है तो उनको एक दूसरे से चिल्लाकर बोलने की आवश्यकता नही होती है। वह एक दूसरे से अतिधीमे से बोलते है। क्योंकि उनका ह्रदय एक दूसरे से बहुत पास होता है। उनके बीच का भौतिक अंतर भी नहीवत होता है।
महात्मा आगे बोले की अगर दो प्रेमी में प्रेम और बढ जाये तो क्या होता है। फिर तो उनको मात्र गुनगुनाना होता है। क्योंकि एक दूसरे के ह्रदय का अंतर और गट जाता है। अंत में प्रेम बढ़ते-बढ़ते एक ऐसी अवस्था आती है जहा पर बात-चीत करने के लिए शब्दों का आधार ही नही होता है। वहाँ तो आँखो के इशारे से ही वातालाप हो जाता है।
महात्मा फिर शिष्यो की ओर स्मित करते हुए बोलते है की जब भी तुम एक दूसरे के साथ दलील करो तो ह्रदय के अंतर को बढ़ने मत देना। ऐसा मत करना जिससे तुम एक दूसरे से दूर हो जाओ। नही तो एक दिन ऐसा आएगा की वापस लौटने का मार्ग ही नही बचा होगा।।