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संस्कार दर्शन तो रोज के व्यवहार मे होते है

संस्कार किसे कहते है? संस्कार यानि क्या? इन प्रश्नो का सीधा और जल्दी जवाब नही दिया जा सकता है। संस्कार एक- दो बातो मे या एक- दो दिन के वर्तन मे नही होते है। संस्कार तो सनातन है। मानव के हर रोज के व्यवहार मे ही संस्कार के दर्शन होते है। संस्कारो को एक दम सरल और असर कारक भाषा मे समझना होतो बोला जा सकता है- अच्छे गुणो का बहुत बडा समूह यानि “संस्कार”

संस्कार का धर्म अधर्म के साथ कोई लेना देना नही होता है। परंतु धार्मिक व्यक्ति के संस्कारित होने की शक्यता ज्यादा रहती है।

हर रोज सुबह उठकर स्नान करके सबसे पहले मंदिर जाता है। वह असंस्कारी भी हो सकता है। कोई इन्सान मंदिर का पगथिया भी नही चढता है तो भी वह इन्सान संस्कारी हो सकता है। जो धार्मिक होता है वही संस्कारी हो जरूरी नही है। अगर ऐसा होता तो सारे धर्मिक व्यक्ति मे मानवता का अवतरण हो जाता पर यह जरूरी नही है। हमारी बात धर्म और अधर्म की नही है संस्कारो की है।

मानव के संस्कार कई बार सामान्य व्यवहार और समझदारी मे झलकते है। और कई बार बडे लोग संस्कारो को छोडकर एकदम असंस्कारी बनकर के वर्तन करते है। बहुत सी बार हम देखते है कि सामान्य इन्सान बडे आदमी को बडा संस्कारित बनकर व्यवहार करता है। और जैसे ही उसका वार्तालाप किसी छोटे कद के आदमी से होता है तो वह सारा विवेक भूल जाता है।

एक आफिस मे, क्लर्क तरीके के फर्ज को निभाता युवक रविवार को उसकी पत्नी और पुत्री को घुमाने लेकर के जा रहा था। उन्होंने सुबह से घुमने जाने का प्लान बनाया था। घर से बाहर निकले उसके पहले ही उसके बाॅस सपरिवार उसके घर आ गये। बाॅस थे, इसलिए चेहरा हँसते रखकर उसका स्वागत किया। बाॅस घर पर आ रहे है, इसका मैसेज तो करना था। मेले यह बाॅस जब इनके बाॅस के मिलने जाते है तो सात बार फोन करके समय पुछ कर के जाते है। मै इनके नीचे काम करता हूँ। तो मेरे प्रोग्राम का बंटाधार करने मे इनको कुसंस्कार जैसे नही लगता है। पापा झू देखने ले जाएंगे- बेटी की इच्छा का बाॅस ने खुन कर दिया।

सच्चे संस्कार यही है कि हर एक इन्सान के साथ एक जैसा व्यवहार करना। कई बार हम बडे आदमी और छोटे आदमी इस तरह की मानसिकता बनाकर व्यवहार करते है। भले छोटे कद का इन्सान आपके सामने नही बोले पर उसे डर तो लगता ही है। ।

” झाड उसके फल से पहचाना जाता है।
सोना कसोटी पत्थर से पहचाना जाता है।
घण्ट की किमत उसके रणकार से होती है।
मानव की किमत उसके संस्कारो से होती है।।”

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