जब सीता अग्नि परीक्षा के लिए निकली तब भी उनके मन में वितराग जिनेन्द्र भगवान का , पंच परमेष्ठीयों का ही ध्यान था … अन्य किसी का भी स्मरण, चिन्तन, ध्यान, आव्हान उन्होंने नहीं किया था ।
सीता जैसा सम्यगदृष्टी जीव संकट में है यह देखकर स्वर्ग के देवोंने उनकी रक्षा के लिए कमल की रचना की ।
पर जब सीता वन में थी , वनवास के कष्ट सहन कर रही थी उस समय या जब सीता रावण की कैद में थी उस समय कोई देव – देवि उनकी मदद को क्यों नहीं आए ? …
देव चाहते तो माता सीता को रावण की कैद से छुडा ले जा सकते थे पर ऐसा न हुआ क्योंकी …।
उस समय सीता के अशुभ कर्मों का तीव्र उदय था और पाप समय में देव भी आपकी कोई मदद नहीं कर सकते !
वनवास और रावण की कैद का संकट सीता ने समता पूर्वक सहा और उनके अशुभ कर्मों की कई कई गुना मात्रा में निर्जरा हो गई ।
अग्नि परीक्षा के समय सीता के शुभ कर्मों का उदय था तथा अगर सीता जैसा धर्मात्मा , सम्यग – दृष्टी जीव का अग्नि परीक्षा में रक्षण न होता तो वह लोगों का सच्चे धर्म से विश्वास कमजोर कर देता …।
सीता और धर्म की रक्षा के लिए देवों ने उस समय उनकी मदद की … पर देव सीता की मदद मात्र इसलिए कर पाए थे क्योंकि उस समय सीता के शुभ कर्म जोर पर थे ।
जो भव्य जीव मात्र सच्चे देव शास्त्र गुरु और केवली भगवान की वाणी पर विश्वास कर आचरण करता है … उसी की मदद देव करते है ।
जो जीव देव – देवियों को भजता है उनके लिए देव मदद नहीं करते है !
जैन दर्शन के चारों अनुयोगो पर आधारीत सीता के जीवन का चिंतन ।।।