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धन्नाजी की 8 पत्नियों का पूर्वजन्म

धन्नाजी यानि ही धन्यकुमार । ये धन्नाजी राजगृही के निवासी थे , शालीभद्र के बहनोई थे , धनसार के पुत्र थे , राजा श्रोणिक के जमाई थे तथा मगध के मंत्री भी थे । उन्हें आठ पत्नीयां थी । सभी उनके सामने हाथ जोड़कर कड़ी रहे वैसी थी ।

पिछले जन्म में धन्नाजी की आत्मा ने जब मुनिराज को खीर वाहोराइ तब पड़ोस की आठ स्त्रियों ने वह दृश्य देखा था । उन स्त्रियों के दिए हुए शक्कर दूध से ही तो खीर बनी थी । इन स्त्रियों ने दासीपुत्र ने जब दान की ख्वाहिश की तब उनकी बहुत अनुमोदना की । उन सबको इस दासी पुत्र के लिए आंतरिक स्नेह भी प्रकटा । यही स्त्रियां दूसरे भव में राजकन्या या फिर श्रेष्ठीकन्याए बनी । दासी पुत्र अब धन्यकुमार बना । क्रमशः उन आठ कन्याओ के साथ धन्यकुमार का विवाह हुआ ।

जब आपत्ति के दिन आये तब धन्नाजी की सात पत्नीयां खुद खुद के पियर चली गयी परन्तु शालीभद्र की बहन सुभद्रा उस समय भी ससुराल में रही । धन्नाजी तो गृहत्याग करके चले गए थे । फिर भी वह खुद के ससुर की छात्र छाया में रही ।

उत्तम स्त्रियां आपत्ति के समय में भी पियर को यद् नही करती परन्तु ससुराल को अनुसारती है । भारत की संस्कृति के ये संस्कार है ।

इस समय दरम्यान एक बार धन्नाजी के पिता को मजदूरी का काम भी करना पड़ा तो भी सुभद्रा हिचकिचाई नही । ऊपर से ससुर को साथ देती रही । खुद सीर पर घमेले (बड़े बर्तन) उठाकर मजदूरी करती , उसके बाद खाना बनाती तथा सबको खिलाती । अंत में स्वयं खाना खाती ।
पिछले जन्म में इस सुभद्रा ने खुद की एक सहेली को कहा था : जा मेरे घर के घमेले उठा । आवेश में बोले हुये ये शब्द थे । इससे उसने ऐसा कर्म बांधा की सुभद्रा के भव में सच में घमेले उठाने पड़े ।

– आधारग्रंथ : श्री धन्य चारित्रम -8 वां प्रस्ताव ।

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