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प्रभु वीर ने गौतम से कहा- समय गोयम ! मा पमायए

मनुष्य भव अति दुर्लभ है, जब करोड़ों भव के पुण्य एकत्रित हुये हैं तब हमें इस मानव भव का एक समय मिला है । वह भी इस भरत क्षेत्र में, महाविदेह क्षेत्र में नहीं । क्योंकि *कर्म राजा ने हमें कहा – “तुम्हारे पास इतने पुण्य नही हैं कि तुम्हें करोड़ों पूर्व का महाविदेह क्षेत्र का मनुष्य भव मिले, अनन्त पुण्य उपार्जन होते हुये भी तुम्हारी दुबली पतली पुण्यवाणी से करोड़ों भव के पुण्य के बदले असाता अन्तराय वाला, युवानी में भी बुढा़पा लगे ऐसा मानव भव हीं मिलता है ।

जिस तरह करोड़ों रुपये देकर कोई हीरे की अंगूठी लेकर आवे एवं घर में से निकलते गटर पर बैठ जावे और अंगूठी गटर में गिर जावे, इसी तरह करोड़ों भवों की कीमत चुकाकर मानव भव के समय को हमने कामभोग के गटर पर रखा हुआ है । अत्यन्त दुर्लभता से जो समय मिला वो कहाँ बिगड़ रहा है उसकी समझ हम में नही है । _यह ऐसा समय है जिसकी असंख्य देव निरन्तर अभिलाषा कर रहे हैं ।_ समकिती देव तीन मनोरथ करते हैं ।

1. कर्मभूमिज मनुष्य भव मिले, युगलिक नहीं ;
2. आर्य क्षेत्र मिले, जैन धर्म पालन योग्य स्थान;
3. उत्तम कुल मिले, जैनी के घर में जन्म मिले ।

जहाँ अहिंसा और समता हो ऐसे उत्तम कुल में जन्म ।
सोचने की बात यह है, कि जो देवता इच्छा रखते हैं, वह हमें मिला हुआ है । परन्तु क्या हम इस भव का सदुपयोग कर रहें हैं, या हीरे की अंगूठी को गटर में जाने देने को बैठे हैं ।
_सोच मानव सोच ……. क्षण भर प्रमाद नहीं, क्षण लाखिनो जाय रे …_

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