“क्रोधात् प्रीति विनाशं मानाद् विनयोपद्यातमाप्नोति
शाठ्यात् प्रत्ययहानिः सर्वगुण विनाशनं लोभात्”।।
मानव जीवन के अनमोल रत्नो का नाश
जीवन के अमृत का नाश नाश नाश
अपने जीवन मे क्या प्रीति का मूल्यांकन किया है? प्रीति वह जीवन का अमृत है। प्रीति वह जीवन का आन्नद है। प्रीति वह जीवन की सफलता का आधार है। प्रीति ही अन्य लोगो के साथ आपको जोडने मे सेतु का कार्य करती है। हमे जब अन्य व्यक्ति से प्रीति मिलती है तो हम आन्नद का अनुभव करते है। दुसरे मनुष्यो का आपके ऊपर स्नेह भाव होना वह जीवन का सार है। पर हम इस सत्य का कितना चिंतन करते है?
जो उपर की सारी बाते सही लगे तो फिर कभी भी क्रोध मत करना। क्रोध की आग को जीवन मे प्रगट मत होने देना।
प्रियतम व्यक्तियो के साथ की प्रीति भी क्रोध के दावानल मे जल कर रंगहीन हो जाती है। रस बिना की मिठाई कोई भी खाने को तैयार नही होता है। पर जैसे ही यह प्रीति का गुण जीवन मे हे गया कोई भी आप से बात करने के लिए तैयार नही होगा। यह नियम शास्त्र मे बताया है। पर इस फर्मुला का प्रयोग असल जिंदगी मे करके देखा जा सकता है। हमे वह लोग ही पसंद आते है जो हमारे साथ प्रेम हे स्नेह से बात करते है। हम उन्हे कदापि बरदाश्त नही करते है जो हमारे सामने गुस्से से पेश आते है। गुस्सा वो प्रीति को खत्म कर देता है। रिश्ते- संबंधो को भी तोड़ देता है। इन सारी बातो का हम कितना चिंतन करते है?। एक क्रोध जीवन को तहस नहस कर देता है। जीवन की सफलता पैसे से नही स्नेह, प्रीति से होती है। और अगर जीवन मे इसे बनाये रखना है तो हमे सर्व प्रथम इस क्रोध को छोडना होगा। तभी हमारे जीवन मे प्रीति प्रवेश करेगी। और जीवन वह रंगबिरंगी बनेगा ।
“तो बस इस जीवन के आकाश मे
रंगो का इन्द्र धनुष बनाकर
उज्ज्वल जीवन का निर्माण करते है।”