ऐसी अमीरी श्रापरूप है:
वयोवृद्ध माता-पिता को स्नान कराने की जिम्मेदारी भी आपकी है। उनके शरीर को कष्ट न पहुंचे इस प्रकार उन्हें संभालने की जिम्मेदारी भी आपकी है। उन्हें वस्त्र पहनाने की जिम्मेदारी भी आपकी है। आप अमीर होने के कारण उनकी सेवा के लिए दो व्यक्ति रख लेते हैं, इस प्रकार मेरा सेवा का कर्तव्य पूरा हुआ- ऐसा मानते हैं तो आप बड़ी भूल करते हैं। जिस अमीर व्यक्ति को उसकी अमीरी अपने माता-पिता की सेवा करने से दूर रखें ऐसी अमीरी श्रापरूप है। यदि आप अमीर नहीं होते तो अपने माता-पिता की सेवा स्वयं करते होते, किंतु आज का हमारा अमीर हमसे कह देता है कि, ‘महाराज साहब! माता-पिता की सेवा के लिए वेल-ट्रेन्ड दो नर्स रख ली है। परंतु साहब! उनका स्वभाव ही ऐसा हो गया है कि बोलते ही रहते हैं ‘पुत्र! मेरे पास बैठा रहे, तू मेरी आंखों के सामने हो तो मुझे अच्छा लगता है।’ ‘ तो साहब! में कब तक उनके पास बैठा रहूं?’ मुझे आप से ज़ोर देकर कहना है कि रोज आप पप्पा-पप्पा कहकर उनके आगे पीछे घूमते थे, तब तुम्हारे वही पापा तुम्हें गोद में उठा-उठाकर घूमते थे। जब तुम बीमार हुए तो तुम्हारी मम्मी बेचारी काम छोड़कर तुम्हारे पास बैठी रहती थी। फिर भी वह उपकार तुम्हें याद न आता हो अथवा भूल गए हो तो कहना पड़े कि आप संपूर्ण कृतघ्न हो गए हो। आप में से कृतज्ञता चली गई है और कृतघ्नता आ गई है। कृतघ्न अर्थात किए हुए उपकार को व्यर्थ कर देनेवाला, भूल जानेवाला और कृतज्ञ अर्थात किए हुए उपकारो को याद रखनेवाला, जाननेवाला।
इसके बाद कहा है कि माता-पिता के शरीर की रोज शुश्रूषा करनी चाहिए। इसमें रोज माता-पिता की पगचम्पी करनी चाहिए। उनका बिस्तर लगा देना चाहिए। उम्र के कारण थोड़े से काम में भी उन्हें थकान लग जाती है। उस समय उनके मस्तक पर हल्के से हाथ फिराकर उन्हें सुखपूर्वक निद्रा आ जाए ऐसी भक्ति करें। आगे बढ़कर, उनके रोम को सुख मिले, उनकी चमड़ी को सुख मिले, उनकी हड्डियों को सुख मिले, अंगों को सुख मिले, इस प्रकार उनकी शारीरिक सेवा-सुश्रुषा करनी चाहिए।
सभा: पांव दबाने जाए तो इनकार करते हैं।
वह भले ही न कहे, तो भी तुम्हें उनकी सेवा भक्ति करने जाना चाहिए। वे ना कहे यह उनका गुण है और सेवा करना यह तुम्हारा कर्तव्य है। एक-दो मिनट आपने पैर दबाए, बिस्तर लगाए और ऐसा करने से उनकी जो प्रसन्नता बढ़ेगी, उन्हें जो खुशी मिलेगी, उनके कलेजे को ठंडक मिलेगी और जो अमीवर्षा होगी, उसमें स्नान करेंगे तो धन्य हो जाएंगे।
वे न कहे इसमें उनकी महानता है और आप उनकी सेवा करने जाए, इसी में आपकी कर्तव्यनिष्ठा है।