इनमें से सबसे पहले माता-पिता के साथ व्यवहार की बात करनी है। ग्रंथकार ने सर्वप्रथम माता-पिता के साथ व्यवहार की बात की है और इसके बाद माता संबंधी कर्तव्यों की बात की है। इसके बावजूद दोनों से संबंधित कर्तव्यो में लगभग समानता होने से हम यहा दोनों संबंधों की बात साथ-साथ करेंगे।
बालक का जन्म से ही माता-पिता के साथ संबंध होता है। जब वह समझदार बने, बुद्धिमान बने, विचारशील बने, थोड़ा भी जिम्मेदार बने, तब उसका अपने जन्मदाता, संस्कारदाता, माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए? यह समझाने के लिए यहां तीन मुद्दे बताए गए हैं।
1. कायिक व्यवहार कैसा होना चाहिए?
2. वाचिक व्यवहार कैसा होना चाहिए?
3. मानसिक व्यवहार कैसा होना चाहिए?
वैसे तो मानसिक व्हवहार सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, इसीलिए वही सबसे पहले बताना चाहिए। किंतु वह जल्दी समझ में नहीं आता, जबकि कायिक व्यवहार तुरंत समझ में आता है। इसीलिए पहले कायिक व्यवहार बताया गया है। माता-पिता के साथ काया से जो व्यवहार करना है वह कैसा होना चाहिए? इसकी यहां बात करनी है। परंतु यहां लिखी बातें कहने से मुझे संकोच होता है कि कहूंगा वह आपको स्वीकार भी होगी या नहीं?
आप सब अपने माता-पिता के साथ कायिक व्यवहार, वाचिक व्यवहार तथा मानसिक व्यवहार से इतने दूर हो गए हैं कि ग्रंथ में इस बारे में कही गई बातें में कहूंगा तो आपको कठिन लगेगी। आज तक आप अपने माता-पिता के साथ कायिक, वाचिक तथा मानसिक रूप से इतने दूर हो गए हैं कि यह बात आपको कितनी अनुकूल आएगी? यह मेरे मन में एक बड़ा प्रश्न है।
माता-पिता के पैर धोएं:
कहा गया है कि रोज सुबह, दोपहर, व शाम इस प्रकार तीनो टाइम माता-पिता के पैर छूने चाहिए। इसके बाद कहा गया है कि जब माता-पिता बाहर से घर लौटे तब आपको उनके पैर पखारने (धोने) चाहिए। इस प्रकार उनके प्रति विनय व्यवहार की शुरुआत करें।
यह आसान-बेफिक्री से सुनने की बात नहीं है। यह अव्यवहारिक बात नहीं है। माता-पिता के पैर धोकर वह पानी मस्तक से लगाना, यह आर्यदेश का उत्तम व्यवहार है। में पैर धोने की बात करूं और कुछ लोगों को सुनकर हंसी आए यह कितनी वेदना की बात है! आर्यदेश का यह महत्वपूर्ण सर्वजन सम्मत व्यवहार था। जिन माता-पिता के उपकार का बदला चुकाने के लिए अपनी चमड़ी के जूते बनाकर पहनाओ, तो भी उनके उपकार का बदला न चुका सको तो उनके पैरधोने की बात सुनकर हंसी आए? तीर्थंकर देव का न्हवण जल मस्तक से लगाते हो कि नहीं? परमात्मा लोकोत्तर तीर्थ है तो माता-पिता को भी लौकिक तीर्थ कहा गया है। तीर्थ जल यदि मस्तक से लगाना हो तो माता-पिता के पैर धोकर पानी मस्तक से लगाना चाहिए अथवा नहीं यह कहो! तीर्थ जल यदि जीवन को पावन करें तो माता-पिता की सेवा क्या आपको पावन नहीं करेगी?