Archivers

मानवता

बात लगभग साठ वर्ष पहलेकी है ,मेरे पडोसीका लड़का बीमार पड़ गया। आर्थिक स्थिति अच्छी न होनेके कारण इलाजकी व्यवस्था ठीक न हो सकी और इससे उसकी बीमारी बढ़ती ही गयी । पता लगनेपर मै एक अच्छे डाक्टरको लेकर उनके घर गया।डॉक्टरने देख-भालकर एक इंजेक्शन लिख दिया औऱ कहा कि यह ‘इंजेक्शन तुरंत दे दिया जाय तो रोगिका बच जाना संभव है।’जहाँ घरमें खानेका ही टोटा हो, वहां इंजेक्शनके लिये पैसे कहाँसे आते, अतः मेने तुरन्त डॉक्टर के हाथ से कागज ले लिया और एक किराएका रिक्शा लेकर इंजेक्शन लाने के लिये मैं मेडिकल स्टोर्स की ओर चल दिया।आधे रास्तेमें पहुँचनेपर मुझे याद आया कि घरसे पैसे तो मैं लाया ही नही।पर मनमें यह आशा हुई कि किसी अच्छे दुकन्दरके पास जाकर सारी परिस्थिति समझा दूँगा तो वह इंजेक्शन दे देगा और मैं उसे बादमे दाम दे आऊँगा।मै एक अच्छे मेडिकल स्टोर में पहुँचा ।वे भाई खद्दरधारी थे औऱ समझदार भी थे, ऎसा उनकी बोलचाल से लगा।मैने इंजेक्शन लेकर उनको सारी परिस्थिति समझा दी ।कुछ ही देर में दुकानदार महोदय के चेहरे का भाव बदल गया उन्होंने उधार न देने की बात कहते हुए साइनबोर्ड की और मेरी दृष्टि खींची ‘terms cash’।मेने अपना परिचय देकर पता बताया ,पर पैसे के पुजारी वे मेरी बात क्यों सुनने लगे।दिए हुए इंजेक्शनको हाथसे वापस लेते हुए उन्होंने कहा-‘पैसा हो,तब ले जाइएगा।’उन्हें यो कहते जरा भी संकोच नही हुआ!
मै दुकानपर पहुँचा था, तब इन दुकानदार भाईने कितनी सुंदर प्रेमपुण मानवता की मुहर मुझपर लगायीं थी । उसके साथ इस समय के इस कोरे व्यापारी की तुलना नही हो सकती ।पहली बार मुहर धोके की चीज निकली और मै इंजेक्शन लिए बिना ही दुकान से बाहर निकला।
रिक्शेवालेने मेरे हाथ मे इंजेक्शन न देखकर सहज ही पूछा -‘भाई!इंजेक्शन ले आये?’मेने सब हकीकत उसे सुना दी । और मेरे आश्चर्य के बीच, किरायेपर रिक्शा चलाने वाले तथा मुश्किलसे दो रुपये रोज कमाने वाले उस रिक्शाचालक भाई ने मेरे हाथ मे दस का नोट रख दिया और कहा-‘जाइये, इंजेक्शन ले आइए।’मैं नोट लेते झिझका औऱ मैने बहुत-सी दलीले की;पर उसने इतना ही कहा- ‘दुःखके समय मनुष्य मनुष्यके काम न आये तो वह मनुष्य कैसा?’ मै इंजेक्शन ले आया और इस प्रकार एक रिक्शेवालेकी मनावताने एक मरते हुए मनुष्यको बचा लिया।
मजदूरी करके पेट पालनेवाला रिक्शाचालक जन्म से ही भला था , इसलिये वह आजतक वैसा ही भला बना रहा । इधर , नाटक करता हुआ वह व्यापारी समय पर मानवता की नकाब फेककर आपने मुलस्वरूपमे आ गया।

-माँ-बाप हमारे लिये* *ATM कार्ड बन सकते है,* *तो ,हम उनके लिए* *Aadhar Card तो बन ही सकते है।*
May 8, 2017
एक सत्य घटना
May 11, 2017

Comments are closed.

Archivers