गुजरात के सौराष्ट्र के छोटे से गांव मे मंगा नाम के हरिजन को भक्ति करते करते भगवान मिले। यह बात पुरे सौराष्ट्र मे फैल गई।
भावनगर के महाराजा के भी कानो मे यह बात पहुंच गई। महाराज ने दिवान से यह बात पुछी। मंगा नाम के हरिजन को भगवान मिले यह बात सही है क्या?
मंत्री ने कहाँ महाराज मेने भी सुना है। महाराज बोले चलो हम जाकर तलाश करते है कही घतिंग तो नही है?।
राजा के काफिलो को तैयार किया। भावनगर के राजा मंगा के गाँव आए। गाँव के बाहर झोपडपट्टी है वही मंगा रहता है। पर मंगा तो झोपड़ी मे ही परमात्मा भक्ति मे मस्त था। उसकी आँखो से परमात्मा भक्ति का रस बह रहा था।
अपने काफिलो के साथ मंगा को ढूंढते ढूंढते झोपडपट्टी की ओर आये।
एक ने कहा वह झोपड़ी मंगा की है।
पुरे गाँव के लोग जमा हो गए। किसी ने जाकर मंगा से कहाँ की भावनगर के महाराजा तेरी झोपड़ी की ओर आ रहे है। तुझे मिलने के लिए ।
मंगा दौडकर झोपड़ी मे से बहार आया। महाराज के चरणो मे गिर गया।
महाराज ने पुछा- तू मंगा है?
मंगा ने कहाँ- हाँ बापू ।
महाराज ने पुछा- सुना है तुझे भगवान मिले है?। हाँ बापू मुझे भगवान मिले है। बडी निखालस्ता से बोला। राजा ने सख्ती से पुछा पर इसका सबूत क्या है? तू बोले और हम मानले?
मंगा ने स्मित और नंम्रता के साथ कहाँ- बापू! आप मेरी झोपड़ी मे आकर खडे रहो यही सबूत नही है। वरना भावनगर मे मुझे आने पर कोई आपसे मुझे मिलने नही देगा। आपके दरबार मे कोई घुसने नही देगा। इसके बदले भावनगर का राजा स्वयं मेरे झोपड़ी मे आकर खड़ा रहे। यही मेरे लिए बडा सबूत है ।
भावनगर के राजा ने भक्त मंगा को वंदन करे और बोले भगवान मिलते है उसे सब कुछ मिलता है।
हमे भी बस भक्त मंगा की तरह हमारी प्रिति के तारो को भगवान से जोड़ना है। हमारा भी बेडा पार हो जाएगा ।।